बुधवार, 23 अगस्त 2017
Ganapti pujan vidhi or ethapna vidhi
मंत्र
नमो व्रातपतये
नमो गणपतये
नमः प्रथमपतये
गजानन विध्नहर्ता हैं, सुख और समृद्धि के दाता हैं।
इस बार गणपति को पूरी श्रद्धा और भावना के साथ-साथ वास्तु के मुताबिक
आमंत्रित करने और स्थापित करने की विधि - यह शास्त्रसम्मत है और वास्तु मुताबिक भी हैं।
थाली में रोली (जो जल में घुलती नहीं है) कुंकुम (जल डालने से चिकनी हो जाती है,रचती है), अक्षत, हल्दी, मौली (कलावा) जनेऊ के लिए कच्चा सूत, दूर्वा और लाल रंग के पुष्प् (गुड़हल हो तो उत्तम) तथा गाय के दुध से बने घी का दीपक रख लें। थाली में एक सिक्का जरूर रखें साथ ही नैवेद्य का सामान रख लें।
कलश ताम्बे या कांसे का हो। इसमें जल, सुपारी और एक रूपए का सिक्का डालें। थोड़ से चावलों पर कलश रखें। सात अशोक या आम के पत्तों को कलश के भीतर से बाहरी किनारों पर जमाने हुए लम्बवत नारियल रखें इस नारियल का मुंह गणपति की तरफ होगा और पूंछ उपासक की तरफ। ध्यान रहे कि गजानन की उपाकना में नारियल खड़ा नहीं रखा जाता।
गणपति जी के सामने रखा दीपक आरती के दीपक से अलग होता है। हर रोज सुबह इसे प्रज्जवलित किया जाता है। दीपक के नीचे अक्षत रखें। अक्षत रोज नहीं बदले जाते, अलबत्ता दीपक रोज साफ करके जलाया जाता है।
पान के पत्ते पर सिक्का रखकर, सुपारी गणेश की स्थापना करते हैं। सुपारी के रूप में गणेश पूजा की रक्षा करते हैं, दोष या विध्न जो हो जाएं उन्हें हरते हैं तथा बाधाएं दूर करते हैं ताकि उपासक की भक्ति सफल हो।
गणपति को चैकी या ऊंचे स्थान पर आसीन किया जाना उचित होता है। चैसी पर वस्त्र बिछाकर उसपर चैकोर चैक पूरा जाता हैं इसे हल्दी से बनाएं। चतुर्थी गणेश जी का जन्मदिन है। नन्हें शिशु को नजर से बचाने के लिए हल्दी से चैक बनाया जाता है। इसके बीच में चावल की ढेरी लगाएं और उस पर सूखे कुंकुम से स्वास्तिक बनाएं। इसके ऊपर गणपति जी को विराजमान कराएं।
थाल, सुपारी गणेश, कलश, दीपक व आसन पर गणपति जी को बिठा देने के बाद सुपारी गणेश पर मौली को वस्त्र स्वरूप् चढाएं। कलश पर स्वास्तिक बनाएं। कलश पर मौली बांधें व उस पर रखे नारियल पर चावल व सिक्का रखें। गणपति जी को भी मौली व जनेऊ अर्पित कर पूजा करे।
गणेश जी को कभी कमरे के बीच में स्थापित न करें। पीठ पीछे दीवार का होना आवश्यक है। वास्तु के नियमानुसार गणेश जी की स्थापना द्वार के तरफ मुख रखते हुए करें तो समृद्धि में बढोतरी होती है। उत्तर की तरफ गणेश जी का मुख हो तो धन की कमी दूर होती है। पूर्व की तरफ भौतिक इच्छाएं पूरी होगी, व पश्चिम की तरफ मुख होने से सुख-शांति की प्राप्ति होगी।
श्रोज पूज के थाल में रूपए अवश्य चढाएं। इनको विसर्जन से समय ब्राहम्ण को दे दें। रोज की पूजन थाली के कुंकुम व हल्दी को सम्भाल लें। इसे हल्दी-कुंकुम के अवसर पर इस्तेमाल करें। चावलों को इकट्ठा करके भंडार के चावलों में डाल सकते हैं। इनको जमा करके पीले रंग के कपड़े में बांधकर तिजारी या भंडार में भी रख सकतें है।
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