Akshay lakshmi sadhana-अक्षय लक्ष्मी साधना
लक्ष्मी तंत्र में बताया गया है कि स्वयं कुबेर ने इस साधना के माध्यम से लक्षमी को अनकूल बनाया था। महर्षि विश्वामित्र ने अक्षय तृतीया के अवसर पर लक्ष्मी को पूर्णता के साथ प्रत्यक्ष प्रगत किया था, स्वयं गोरखनाथ ने एक स्थान पर कहा है, भले ही अन्य सारे प्रयोग असफल हो जाये, भले ही साधक नया हो, भले ही उसे स्पष्ट मंत्रों का उच्चारण ज्ञात न हो या उसे पूजा पद्धति की जानकारी न हो, परन्तु अक्षय तृतीया के अवसर पर इस अक्षय लक्ष्मी साधना संपन्न करता है तो उसे जीनव में सभी दृष्टियों से पूर्ण अनुकूलता एंव लाभ प्राप्त होता है। इसलिए तो साधक अक्षय तृतीया की प्रतिक्षा करते रहते है। राजस्थान और गुजरात में तो अक्षय तृतीया को श्रेष्ठ मुहूर्त मान लिया जाता है, और वे यह मानते है कि अक्षय तृतीया के लिए किसी मुहूर्त योग या ज्योतिष की आवश्यकता नहीं होती, इस दिन जो भी प्रयोग किया जाता है वह अपने आप में पूर्ण सफल होता है और इसलिए अक्षय तृतीया के दिन बिना मुहूर्त देखे ही सैकडों विवाह सम्पन्न होते है।
Akshay lakshmi sadhana |
अक्षय लक्ष्मी साधना
धाना समय शास्त्रों में बताया गया है कि यों तो यह प्रयोग अक्षय तृतीया को ही सम्पन्न किया जाना चाहिए परन्तु यदि किसी कारणवश अक्षय तृतीया को यह प्रयोग सम्पन्न न हो सके तो किसी भी अमावस्या की रात्रि को यह प्रयोग सम्पन्न किया जा सकता है, और इसका अनुकूल फल प्राप्त किया जा सकता है।
साधना सामग्री
इसके लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती ।निम्न वस्तुओं की जरूरत होती हैं।
1. अक्षय लक्ष्मी चित्र
2. भगवती अक्षय लक्ष्मी महायंत्र जो इंद्रकृत विधि से सिद्ध और चैतन्य हो
3. कमलगट्टे की माला
4. तांत्रोक्त नारियल।
इसके अलावा जल पात्र केसर , चावल, नारियल, दूध का बना हुआ प्रसाद, फल शुद्ध घृत का दीपक आदि की व्यवस्था भी पहले से ही कर लेनी चाहिए
साधना प्रयोग
अक्षय तृतीया की राशि को अर्थात इस वर्ष 14.05.2021 की राशि को कोई साधक अकेले या अपनी पत्नी के साथ साधना सम्पन्न कर सकता है, रात्रि का तात्पर्य सूर्यास्त से सूर्योदय तक होता है। इससे सबंधित विशिष्ट सामग्री पहले से ही मांग कर रख लेनी चाहिए जिससे कि समय इस पर उपयोग किया जा सके, इसमें अक्षय लक्ष्मी महायंत्र अपने आप से अद्वितीय होता है, क्योंकि इसे विशेष रूप से सिद्ध और चैतन्य किया जाता है इस यत्रं पर लक्ष्मी के सभी रूपों की पूजा एक साथ हो जाती है, क्योंकि इसमे योगी मत्सयेन्द्र नाथ ने लक्ष्मी के जिन-जिन रूपों की व्याख्या की है, उन सभी के मंत्रो से इसे सिद्ध और चैतन्य बनाया जाता है।
सामने पात्र में त्रिगंध से स्वस्तिक का चिह्न बना कर उस पर महांयत्र को स्थापित कर दें और इस महायंत्र पर नौ स्थानों पर त्रिगंध से बिन्दियां लगावें और फिर यंत्र के सामने नौ गुलाब के पुष्प या किसी भी प्रकार के पुष्प समर्पित करें। इसके साथ ही तांत्रोक्त नारियल स्थापित करके तिलक करें।
फिर सामने दूध का बना हुआ प्रसाद का भोग लगावें, नारियल को स्थापित करें और फल, दक्षिणा आदि समर्पित करें।
इसके बाद यंत्र के आगे शुद्ध घृत के छोटे-छोटे नौ दीपक लगावे जिनका मुंह साधक की ओर हो। इसके बाद साधक निम्न मंत्र की नौ माला मंत्र जप करें यह मत्रं भले ही छोटा सा दिखाई दे पर यह बीज रूपेण होने की वजह से अपने आप में ही सिद्ध और अलौकिक है, इसमें कमलगट्टे कीमाला का ही प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य किसी भी माला का प्रयोग न करें। और यदि कमलगट्टे की माला पहले किसी अन्य प्रयोग में उपयोग की हुई है, तो इस मालमाला का भी प्रयोग वर्जित है।
अक्षय महालक्ष्मी पंत्र
!! ऊॅ ऐं ऐं अक्षय लक्ष्मी ऐं ऐं नमः!!
जब नौ माला मंत्र जप हो जाए तब सामने किसी पात्र में अग्नि लगा कर घृत और कमलगट्टे से 101 आहुतियाॅ उपरोक्त मंत्र से ही दें इसमे ंएक चम्मच में शुद्ध घृत तथा एक कलम का बीज अर्थात कमलगट्टा लेकर उपरोक्त मंत्र का उच्चारण कर अग्नि में समर्पित कर दें
जब यह हवन सम्पन्न हो जाय तब साधक का चाहिए कि कपूर से भगवती लक्ष्मी की आरती पूर्ण विधि-विधान के साथ सम्पन्न करें।
आरती के बाद साधक सामने रखे हुए प्रसाद को पूरे घर के सदस्यों में वितरित करें और भक्ति भाव से अक्षय महालक्ष्मी महायंत्र को प्रमाण करें और उसे घर के पूजा स्थान में स्थापित कर दें एवं तांत्रोक्त नारियल रात्रि में ही किसी चैराहे पर या किसी मन्दिर में जाकर रख दें।
वास्तव में ही यह दुर्लभ और अद्वितीय साधना है, जिसे प्रत्येक साधक को सम्पन्न करनी ही चाहिए।
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