Hypnotize-हिप्नोटिज्म
या दूसरों को वश में करना हिप्नोटिज्म या मेस्मरेजिम में विशेष अन्तर नहीं है। हिप्नोटिज्म में यह विशेषता है कि आमिल मामूल को बिलकुल अपना आज्ञाकारी बना लेता है। जो आमिल सोचता है वही बात मामूल के मस्तिष्क में आती है या जो आज्ञा देता है उसे मामूल तत्काल करता है।
Hypnotize-हिप्नोटिज्म |
सजेशन-आमिल जो आज्ञा देता या अपने विचारों को मामूल के मस्तिष्क पर अंकित कर अपना आज्ञाकारी बनाता है वही सजेशन कहलाता है। हम इस विषय को और भी विस्तार पूर्वक लिखकर पाठकों को समझाना चाहते हैं।
विचार शक्ति की पूर्ण महिमा तो हम आगे लिखेंगे। यहां केवल इतना ही लिखना ठीक है कि विचार शक्ति बड़ी ही प्रबल होती है। यदि मनुष्य में विचार न रहे तो वह मनुष्य ही नहीं रहता इसीलिए कहा है कि संसार विचारमय है अर्थात् विचारों के समूह का ही नाम संसार है। विचार की पहुंच न मालूम कहां तक हो सकती है। विचार विद्युत प्रभा की तरह सर्वत्र व्यापक है। यही कारण है कि एक विचार एक स्थान से दूसरे स्थान में पहुंच सकता है। इस विचार परिवर्तन की प्रक्रिया को हम आगे लिखेंगे।
आपने देखा होगा कि एक फकीर साहूकार से पैसा मांगता है। एक बार न देने पर वह दुबारा मांगता है। तिबारा मांगता है यहां तक कि साहूकार को विवश हो देना पड़ता है अर्थात् साहूकार का विचार फकीर के विचार के आधीन हो जाता है। यही सजेशन कहलाता है और भी उदाहरण लीजिए। बच्चे और स्त्री आप से हठ करते हैं। आपको विवश हो अपने विचारों को उनके विचारों के अधीन करना पड़ता है विज्ञापक लोग विज्ञापन देते हैं। कट्टर से कट्टर मनुष्य जो विज्ञापन के नाम से भी नाक भौं सिकोड़ते हैं एक न एक दिन विज्ञापन के जाल में फंस ही जाते हैं। लेख द्वारा विज्ञापक का सजेसन अपना प्रभाव पाठक के मस्तिष्क पर डालता है। दुकानदार लोग चीज को अच्छा बतलाकर और दिखलाकर आपके विचार को अपने अधीन बनाते तथा आपसे रुपया छीनते है। इधर उधर फिरने वाले एजेन्टों का भाषण भी सजेसन का काम देता है। इसे सजेशन का एक रूप ही कहना चाहिए परन्तु यदि हिप्नोटिज्म जानने वाला मनुष्य दुकानदारी आदि करे तो फिर भला क्या कहने। कोई ग्राहक उसकी दुकान से कदापि सौदा खरीदे बगैर जा नहीं सकता।
हिप्नोटिज्म और सजेशन का परस्पर विशेष संबन्ध है। इस विद्या के सीखने के लिये अत्यन्त फुरती, चालाकी, बुद्धिमता, दृढ़ता, कुशलता एवं ईमानदार होने की आवश्यकता है उदार. सच्चे. और ईमानदार मनुष्य इस विद्या को सीखकर वसुन्धरा का हित कर सकते हैं परन्तु बुरे और अयोग्य मनुष्य इस विद्या से वह-2 रहस्यपूर्ण घटना पैदा कर देते हैं कि जिनका सुलझाना दूभर पड़ जाता है। अतएव उदार और पवित्र हृदय वालों को ही इस विद्या का अध्ययन और मनन कराना चाहिये क्योंकि इसमें मामूल सर्वथा आमिल के अनुकूल तथा उसका आज्ञाकारी होता है। हिप्नोटिज्म में भी मामूल को अचैतन्य कराना होता है परन्तु यह अचैतन्यता और ही प्रकार की होती है। उसे सोना नहीं पड़ता। केवल उसके वाह्य शरीर पर आकर्षित निद्रा का अधिकार हो जाता है। मामूल चल फिर कर आमिल की आज्ञानुसार काम कर सकता है।
शरीर ढीला होना-
हिप्नोटिज्म आदि से मामूल को अचैतन्य करना या उस पर प्रभाव पड़ने के लिये विधि पीछे लिखी जायगी यहां केवल आप अपने शरीर को हिप्नोटिज्म के प्रारम्भिक व्यायाम के आधीन करदो जिनका वर्णन कि यहां किया जाता है। इन व्यायामों से आमिल को हिप्नोटिज्म के कुशल अध्यक्ष बनने में बड़ी सहायता मिलेगी। अधिकतर मनुष्य अपने अवयवों को सदा तना हुआ रखते हैं जिसके कारण वह सदा थके हुए रहते हैं। यदि वह अपने शरीर को कभी-२ ढीला छोड़ दिया करें तो उनको बहुत आराम मिले और शरीर में बल भी अधिक उत्पन्न हो जाय। उनके शरीर में न तो कभी पीड़ा होगी और न अनियमित बातें ही सता सकेंगी। उनकी जीवनावधि-वृद्धि में भी कोई सन्देह नहीं।
शरीर को ढीला करने की विधि
यह है। एक एकान्त निर्जन तथा नीरव कमरे में शुद्ध होकर एक मनुष्य को अपने पास बिठलाओं। अपने चित्त की वृत्तियों को चारों ओर से समेट कर एक करो। उस मनुष्य से भी ऐसा ही करने के लिये कहो। इसके पश्चात् उससे कहो कि वह अपने सीधे हाथ को अपने बाम हाथ की उंगलियों पर रखे और दोनों हाथों को बिलकल ढीला छोड दे। ऐसा मालूम पड़ने लगे मानों हाथों का सारा बोझ उंगलियों पर ही आ पड़ा है। पांच मिनट तक ऐसा ही रहने दो। तत्पश्चत् उसे कहो कि वह अपनी बाम हस्त की उंगलियों को निकाल ले। तो वह हाथ निर्बल होकर उठ न सकेगा। अगर पहिले दिन ऐसा न हो तो घबड़ाने या हताश होने की आवश्यकता नहीं और इससे हिप्नोटिज्म विद्या पर अविश्वास ही कर बैठना चाहिये वरन् प्रतिदिन इसका अभ्यास नियत समय पर करना चाहिये। ईश्वर की कृपा से अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी।
एक बात का इस अभ्यास के करने में और भी ध्यान रखना चाहिये यदि तुम यह देखो कि जो मनुष्य अपने शरीर को ढीला डालने का अभ्यास कर रहा है कई दिन के लगातार अभ्यास करने पर भी सफलता प्राप्त नहीं करता तो तुमको अपने हृदय में तुरंत यह समझ लेना चाहिये कि उसने अपने हाथं का पूरा बोझ उंगलियों पर नहीं छोड़ा। यदि बोझ को पूर्णतयः छोड़ देता तो इतने दिनों तक असफल रह ही नहीं सकता इस लिये तुमको उचित है कि शरीर ढीला करने के अभ्यास करने वाले को स्पष्ट समझा कर कह दो कि वह पूरा बोझ छोड़ दे अन्यथा सफलता बहुत दिन देरी में जाकर होगी।
इस अभ्यास को कम से कम एक मास तक खूब जी लगाकर करना चाहिये। यह आवश्यकीय नहीं कि अभ्यास दिन में ही किया जाय। रात्रि का समय अधिक उपयुक्त है। जब तक यह अभ्यास पूरा न हो जाय कदापि न छोड़ना चाहिये और न आगे के अभ्यास की ओर बढ़ना चाहिये। इस अभ्यास में पूर्ण सफलता
और क्षमता प्राप्त करने के लिये हम बार-2 इस कारण से जोर देते हैं कि यही अभ्यास हिप्नोटिज्म की जड़
है। जड़ के मजबूत होने से ऊँचे-ऊँचे और टिकाऊ भवन बन सकते हैं सफलता प्राप्त होते ही इसको छोड़ देना अभ्यास को अधकचरा छोड़ देना है। अतएव खूब जी लगाकर इसमें पूर्ण कुशलता लाभ करना चाहिये जब ऐसा हो जाय तो इसके अन्य अभ्यासों के करने में प्रवृत्ति होना चाहिये।
पीछे की ओर आकर्षण-
जिस मामूल में शरीर ढीला करने की क्षमता आगई हो उसको सीधा इस प्रकार खड़ा करो कि उसकी एड़ियां जुड़ी हों, हाथ दोनों ओर सीधे पड़े हों नेत्र बन्द हों, शरीर ढीला हो। अब तुम उसके पीछे खड़े हो जाओ और मामूल से कहों कि वह अपने मन में यह विचार करे कि मुझे पीछे गिरना है तुम अपने बायें हाथ को मामूल के मस्तक पर और सीधा हाथ शिखा से तनिक नीचे हट कर लगाओ। धीरे-धीरे अपने बांये हाथ के सहारे से मामूल के शिर को दांये हाथ की हथेली पर लो। जब मामूल झुकने लगे तो धीरे से अपना बायां हाथ इस प्रकार हटालो कि मामूल को मालूम न पड़े और फिर अपना सीधा हाथ भी उसी प्रकार हटाओ तो मामूल पीछे की ओर गिरने लगेगा परन्तु मामूल को गिरने न दो और सावधानी के साथ उसको पकड़ लो। ऐसे समय पर आमिल के बहत अधिक सावधान होने की आवश्यकता है। मामूल को भी पूरे तौर पर विश्वास रखना चाहिये कि मैं गिरूंगा तो मुझे आमिल पकड़ लेगा अतएव पूर्ण विश्वास से इस अभ्यास को पूरा करना चाहिये
और उस समय तक इसको बराबर नियत समय तक करते रहना चाहिये जब तक आमिल के मामूल के कंधे से हाथ लगाने से ही मामूल खिंचना आरम्भ न करदे। इसके बाद भी इसका अच्छा अभ्यास करना चाहिये। यह अभ्यास भी कम से कम दो मास में पूर्ण होगा। यद्यपि लोगों को इसमें शीघ्र साफल्य लाभ करते हमने देखा है परन्तु उनमें आकर्षण शक्ति का स्वाभाविक अन्श ही कुछ अपेक्षाकृत अधिक होता है।
अग्राकर्षण-
जिस प्रकार मामूल को पहिले खडे होने के लिए कहा गया है उसी प्रकार अब भी खड़ा हो। यह मामूल वही मामूल होना चाहिए जिस पर पहिले अभ्यास पूर्ण सफल हो चुके हों।
खड़े होने की स्थिति में केवल इतना अन्तर होना चाहिये कि इस अभ्यास में मामूल को अपने नेत्रों के बन्द करने की आवश्यकता नहीं है मामूल को चाहिये कि वह अपने मन में यह ध्यान जमाता रहे कि मैं आगे की ओर खिंचूंगा। अब आमिल को चाहिये कि वह अपने दोनों हाथों की उंगलियों को मामूल की कनपटियों पर रखे। यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि आमिल को मामूल के सन्मुख खड़ा होना चाहिये अब मामूल से अपनी आंखों की
ओर टकटकी लगाकर देखने के लिये कहो। और मामूल की नाक की जड़ की ओर देखना प्रारम्भ करो परन्तु आमिल को अपने मन से हर समय यही ध्यान रखना चाहिये कि मैं मामूल को अपनी ओर आकर्षित कर रहा हूँ। जब दो मिनट इस प्रकार हो जायं तो आमिल को चाहिये कि अपने दोनों हाथों की उंगलियां धीरे-धीरे कनपटियों पर से इस प्रकार हटाले कि मामल को मालूम न पडे तो मामूल आगे की ओर खिंचने लगेगा। इस प्रकार के अभ्यास पूर्ण होने पर मामूल आमिल की आज्ञा पर ही आगे खिंचने लगेगा। इस अभ्यास के लिये दो मास से कम की आवश्यकता नहीं है।
हाथ बांधना-
हिप्नोटिज्म का चौथा अभ्यास हाथ बांधना है। जब पहिले तीनों अभ्यासों में पूर्ण निपुणता प्राप्त हो जाय तब इस चौथे अभ्यास की ओर प्रवृत्त होना चाहिये। मामूल को अपने सन्मुख खड़ा करके उसके दोनों हाथों की उंगलियों को अपने हाथों की उंगलियों में मिलाकर बांधों तथा मामूल से कहो कि वह तुम्हारे नेत्रों की ओर दृष्टि बांध कर देखता रहे तुम भी उसकी नासिका की जड़ की ओर दृष्टि जमा कर देखो। मामूल को चाहिये कि वह मन में इस बात का ध्यान करो कि मेरे हाथ बंध गये। अब वह पृथक-पृथक नहीं हो सकते।
आमिल भी मन में यही विचारता रहे। 5 मिनिट पीछे आमिल को चाहिये कि वह धीरे-धीरे अपने हाथों की उंगलियां निकाल ले तथा अपने दोनों हाथों से मामूल के दोनों बाहुओं पर पास करे। मामूल अपने जुड़े हुए हाथों को अलग-अलग नहीं कर सकता। यह बात पहिले ही दिन प्राप्त नहीं हो सकती। पूर्ण अभ्यास की आवश्यकता है। उपर्युक्त अभ्यासों में आमिल और मामूल को अपने मन में ही कार्यवाही के ध्यान में रखने से पूर्णता प्राप्त हो सकती है परन्तु यदि आमिल रोबदार आवाज में सजेशन भी देता जाय तो शीघ्र ही अभ्यासों में सफलता हो सकती है। जैसे इसी अभ्यास में यदि आमिल यह कहता जाय कि तुम्हारे हाथ बंध गये अब तुम अपने हाथों को अलग-अलग नहीं कर सकते तो अवश्य ही सजेशन मामूल के हृदय पर प्रभाव डालेगा और अभ्यास की पूर्ति में सहायता मिलेगी। यों तो हिप्नोटिज्म सीखने के लिये बहुत से अभ्यास करने पड़ते हैं परन्तु ऊपर लिखे चारों अभ्यास बड़े उत्तम हैं। उनके प्रयोग से आमिल शीघ्र ही हिप्नोटिज्म में सुदक्ष बन सकता है। इन अभ्यासों को हमने कई हिप्नोटिज्म के जानने वालों से मशवरा करके तथा पुस्तकों का मनन करके लिखा है। अतएव यह अभ्यास सर्वोत्तम हैं अत्यन्त स्थिरता, बुद्धिमता और सावधानी के साथ इन अभ्यासों में कुशलता प्राप्त करनी चाहिये क्यों कि यही अभ्यास इस अद्वितीय विद्या के सीखने की सीढ़ियां हैं। इन चारों अभ्यासों के पूर्ण करने में थोडा सा समय तो अवश्य लगेगा परन्तु नियत समय पर एकान्त में इसका अभ्यास करना, चित्त को एकाग्र करना आदि बातें इस विद्या के सीखने में और भी शीघ्रता ला सकती हैं।
जब मामूल के हाथ बंध जायं तो उसे प्रभाव के दूरीकरण का प्रयोग करना चाहिये। इसकी सरल तरकीब यह है कि जोर से तीन बार ताली बजा कर सजेशन दो कि अपने हाथों को पृथक करो सावधान हो। मामूल अवश्य ही अपनी स्वाभाविक अवस्था पर आ जायगा और वह अपने दोनों हाथों के पृथक -पृथक करने में समर्थ होगा यदि ऐसा हो कि मामूल हाथ अलग-अलग न कर सके तो आमिल को बारम्बार ताली बजाकर सजेशन देते रहना चाहिये। अवश्य ही मामूल के हाथ खुल जायेंगे। इन चारों अभ्यासों के पूर्ण करने पर उनको प्रति दिन करते रहना चाहिये ताकि आकर्षण शक्ति और भी प्रबल हो सके और आमिल अपनी करामात दिखाने में सुदक्ष दीख पड़े।
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