Pitra Dosh-पितृ दोष
भारतीय हिन्दुधर्म की मान्यतानुसार पितृ दोष एक ऐसी स्थिति का नाम है, जिसके अन्तर्गत किसी एक के किए गए पापों का नुकसान किसी दूसरे को भोगना पडता है।
उदाहरण के लिए पिता के पापों का परिणाम यदि पुत्र को भोगना पडे, तो इसे पितृ दोष ही कहा जाएगा क्योंकि हिन्दु धर्म की मान्यता यही है कि पिता के किए गए अच्छे या बुरे कामों का प्रभाव पुत्र पर भी पडता है। इसलिए यदि पिता ने अपने जीवन में अच्छे कर्म की तुलना में बुरे कर्म अधिक किए हों, तो मृत्यु के बाद उनकी सद्गति नहीं होती और ऐसे में वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। इसी स्थिति को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।
Pitra Dosh-पितृ दोष |
इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति के पूर्वज पितृलोक में निवास करते हैं और पितृ पक्ष के दौरान ये पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं तथा अपने वंशजों से भोजन की आशा रखते हैं। इसलिए जो लोग पितृपक्ष में अपने पूर्वजों या पितरों जैसे कि पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास आदि का श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि नहीं करते, उनके पितर अपने वंशजों से नाराज हाेकर श्राप देते हुए पितृलोक को लौटते हैं, जिससे इन लोगों को तरह-तरह की परेशानियों जैसे कि आकस्मिक दुर्घटनाओं, मानसिक बीमारियों, प्रेत-बाधा आदि से सम्बंधित अज्ञात दु:खों को भोगना पडता है और जिन्हें पितृ दोष जनित माना जाता है।
साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि जो लोग अपने पूर्वजन्म में अथवा वर्तमान जन्म में अपने से बडों का आदर नहीं करते बल्कि उनका अपमान करते हैं, उन्हें पीडा पहुंचाते हैं, अपने, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण नहीं करते, पशु-पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करते हैं और विशेष रूप से रेंगने वाले जीवों जैसे कि सर्प आदि का वध करते हैं, ऐसे लोगों को पितृ दोष का भाजन बनना पडता है।
पितृ दोष के संदर्भ में यदि हम धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बात करें तो जब हमारे पूर्वजों की मृत्यु होती है और वे सदगति प्राप्त न करके अपने निकृष्ट कर्मो की वजह से अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति व असंतुष्टि का अनुभव करते हैं, तो वे अपने वंशजों से आशा करते हैं कि वे उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके अथवा उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके।
उनकी भटकती हुई आत्मा को यदि सद्गति देने के लिए उनके वंशज कोई प्रयास करते हैं, तो वे आत्माऐं उन्हें आर्शीवाद देती हैं, जिससे उन लोगों की जिन्दगी धार्मिक, आर्थिक, व्यावसायिक, सामाजिक व मानसिक आदि सभी स्तरों पर काफी अच्छी हो जाती है। लेकिन यदि सद्गति देने के लिए उनके वंशज कोई प्रयास न करें, तो पूर्वजाें की आत्माऐं यानी पितर असंतुष्ट रहते हैं और अपने वंशजों को दु:खी करते हैं, जिसका लक्षण वंशजों की जन्म-कुण्डली में पितृ दोष के रूप में परिलक्षित होता है।
हिन्दु धर्म में पितृदोष से कई प्रकार की हानियों का विस्तृत वर्णन है जिनके अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति पित्रृदोष से पीडित हो, तो उसे अनेक प्रकार की मानसिक परेशानियां व हानियां उठानी पडती है, जिनमें से कुछ निम्नानुसार हैं-
राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, ब्रहमराक्षस आदि विभिन्न प्रकार की अज्ञात परेशानियों से पीडित होना पडता है।
- ऐसे लोगों के घर में हमेंशा कलह व अशांति बनी रहती है।
- रोग-पीडाएं इनका पीछा ही नहीं छोडती।
- घर में आपसी मतभेद बने रहते है। आपस में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगडे होते रहते है।
- कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती है।
- अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
- संकट, अनहोनीयां, अमंगल की आशंका बनी रहती है।
- संतान की प्राप्ति में विलंब होता है अथवा संतान होती ही नहीं है।
- घर में धन का अभाव रहता है।
- आय की अपेक्षा खर्च अधिक होता है अथवा अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
- संतान के विवाह में काफी परेशानीयां और विलंब होता है।
- शुभ तथा मांगलीक कार्यों में काफी दिक्कते उठानी पडती है।
- अथक परिश्रम के बाद भी थोडा-बहुत फल मिलता है।
- बने-बनाए काम को बिगडते देर नहीं लगती।
- तो यदि बहुत मेहनत करने के बाद भी वांछित सफलता प्राप्त न हो, हमेंशा किसी न किसी तरह की परेशानी लगी ही रहे, घर के किसी न किसी सदस्य को मानसिक परेशानी या मानसिक रोग लगा ही रहे, जिसका ईलाज अच्छे से अच्छा चिकित्सक भी ठीक से न कर पाए, घर के निवासियों के बार-बार बेवजह अकल्पनीय रूप से एक्सीडेंट्स होते हों, तो इस प्रकार की अप्राकृतिक स्थितियों का कारण पितृ दोष हो सकता है।
पितृ दोष है या नहीं – कैसे जानें ?
हिन्दु धर्म में ज्योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति पितृ दोष से पीडित है या नहीं। क्योंकि यदि व्यक्ति के पितर असंतुष्ट होते हैं, तो वे अपने वंशजों की जन्म-कुण्डली में पितृ दोष से सम्बंधित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-शनि या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। साथ ही कुंडली के जिस भाव में ये योग होता है, उसके सम्बंधित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं।
उदारहण के लिए
यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का अशुभ योग-प्रथम भाव में हो, तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं क्योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते है और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरे भाव में हो, तो धन व परिवार से संबंधित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।
चतुर्थ भाव में हो तो भूमि, मकान, सम्पत्ति, वाहन, माता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं।
पंचम भाव में हो तो उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।
सप्तम भाव में हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्यवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है।
नवम भाव में हो, तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्य की हानि करता है।
दशम भाव में हो तो सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
उपरोक्तानुसार किसी भी प्रकार की ग्रह-स्थिति होने पर अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि व मानसिक रोगों से सम्बंधित अनिष्ट फल प्राप्त होते हैं।
पित्र दोष निवारण – सरल उपाय
पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है।
पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे पीपल या बरगद का वृक्ष लगाकर, उसकी पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने से भी पितृदोष समाप्त होता है ।
प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी पितृ दोष की शान्ति होती है।
सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, जल चढाने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है जिसकी कमजोरी ही पितृ दोष का मुख्य कारण है।
सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है।
घर के सभी बड़े-बुजुर्गों को प्रेम, सम्मान और पूर्ण अधिकार दिया जाना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से पित्र दोष में लाभ मिलता है।
अमावस्या को बबूल के पेड़ पर संध्या के समय भोजन रखने से भी पित्तर प्रसन्न होते है।
आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हो घर में भोजन बनने पर सर्वप्रथम पित्तरों के नाम की खाने की थाली निकालकर गाय को खिलाने से उस घर पर पित्तरों का सदैव आशीर्वाद रहता है। घर के मुखियां को भी चाहिए कि वह भी अपनी थाली से पहला ग्रास पित्तरों को नमन करते हुए कौओं के लिये अलग निकालकर उसे खिला दें।
श्री मद भागवत गीता का ग्यारहवां अध्याय का पाठ करें।
शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, काला तिल चढाऐं।
जब भी किसी तीर्थ पर जाएं तो अपने पितरों के लिए तीन बार अंजलि में जल से उनका तर्पण अवश्य ही करें ।
पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।
भोजन से पहले तेल लगी दो रोटी गाय को खिलाएं।
श्राद्धपक्ष या वार्षिक श्राद्ध में ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन में पितरों की पसंद का पकवान जरुर बनाएं।
देवता और पितरों की पूजा स्थान पर जल से भरा कलश रखकर सुबह तुलसी या हरे पेड़ों में चढ़ाएं।
हालांकि कुण्डली में दिखाई देने वाला कोई भी दोष उस जातक के लिए कभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हो सकता। लेकिन यदि किसी की कुण्डली में पितृ दोष हो, तो वह इन उपायों में से जितने सम्भव हो सके, उन्हें उपयोग में लेकर अपने पितृ दोष के प्रभावों में कमी ला सकता है।
यधपि मान्यता ये है कि यदि कोई पितृ दोष या कालसर्प दोष से पीडित हो और उसने कभी भी पितृ दोष या कालसर्प दोष निवारण से सम्बंधित कभी कोई उपाय नहीं किया है, तो उसकी जन्म-कुण्डली में पितृ दोष या कालसर्प दोष के योग जरूर होंगे। साथ ही उसकी संतानों की कुण्डली में भी पितृ दोष या कालसर्प दोष से सम्बंधित योग दिखाई देंगे और एसा इसलिए होता है क्योंकि पितृ दोष व कालसर्प दोष कई पीढियों में आगे से आगे समान रूप से चलता रहता है।
इसलिए यदि आपकी कुण्डली में पितृ दोष या कालसर्प दोष है, तो उसका यथा सम्भव निवारण कीजिए। जब आप पितृ दोष या कालसर्प दोष से सम्बंधित सभी उपयुक्त उपाय करते हैं और यदि आपका पितृ दोष या कालसर्प दोष का प्रभाव कम या समाप्त होता है, तो उस स्थिति में आपके परिवार में जन्म लेने वाली अगली संतान की जन्म-कुण्डली में पितृ दोष या कालसर्प दोष से सम्बंधित योग पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं। जबकि यदि जन्म लेने वाली नई संतान की कुण्डली में भी पितृ दोष या कालसर्प दोष के योग दिखाई दें, तो ये इसी बात का संकेत है कि अभी भी आपका पितृ दोष या कालसर्प दोष पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है।
यहां एक बाद ध्यान रखने वाली ये है कि हालांकि कालसर्प दोष का सम्बंध श्राद्ध से है, लेकिन पितृ दोष का कोई सम्बंध कालसर्प दोष से नहीं है। कालसर्प दोष और पितृ दोष, दोनों को अक्सर मिला दिया जाता है क्योंकि दोनों ही प्रकार के दोषों का निवारण करने के लिए श्राद्ध करना होता है। जबकि वास्तव में श्राद्ध भी 5 प्रकार के होते हैं, और पितृ पक्ष में किया जाने वाला पितृ यज्ञ या पितृ श्राद्ध, उनमें से एक है तथा कालसर्प योग के दोष या सर्प दोष के निवारण के लिए जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नारायणबलि, नागबलि या त्रिपिण्डी श्राद्ध के नाम से जाना जाता है और इसका कोई सीधा सम्बंध पितृ दोष से नहीं होता।
पितृ दोष निवारण कैसे करें ?
पूर्वजों के कारण, विशिष्ट प्रकार के आध्यात्मिक कष्ट होते हैं । इसलिए ऐसे कष्टों का निवारण (पितृ दोष निवारण) भी विशिष्ट आध्यात्मिक उपायों से ही होता है । ऐसे कष्टों में, शारीरिक एवं मानसिक उपायों से केवल लक्षण में ही सुधार हो सकता है; परंतु कष्ट के मूल का निवारण नहीं हो पाता ।
उदा. यदि किसी को चर्म रोग पितृदोष के कारण हुआ हो, तो चिकित्सकीय उपचार से उसे राहत तो मिलेगी; परंतु वह रोग पूर्ण रूपसे ठीक नहीं होगा तथा उसके पुनः होने की संभावना बनी रहेगी । दत्तात्रेय एक देवता हैं, जिनका तारक नामजप ‘श्री गुरुदेव दत्त’ पितृ दोष निवारण (पितरों की अतृप्ति के कारण होने वाले कष्टों से निवारण) हेतु सहायक है । हमारा परामर्श है कि इसे प्रतिदिन अपने पंथानुसार उपयुक्त / इष्टदेवता / कुलदेवता के नामजप के साथ करना चाहिए ।
भगवान दत्तात्रेय का नामजप विशिष्ट रूप से पितरों के आध्यात्मिक कष्टों से निवारण (पितृ दोष निवारण) का विदित उपाय है । दूसरी ओर, अपने जन्मानुसार पंथ के इष्टदेवता के नामजप से हमें आध्यात्मिक प्रगति के लिए पोषक, सर्वसामान्य आवश्यक आध्यात्मिक तत्त्व मिलते हैं । परंतु भगवान दत्तात्रेय के नामजप से आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती; अपितु सुरक्षा-कवच मिलता है । ओर पितृ दोष निवारण होता है ।
पितृ दोष निवारण, इसे एक तुलनात्मक उदाहरण से समझते हैं । किसी को यदि सर्दी हुई हो, तो उसे विटामिन सी की अतिरिक्त मात्रा लेनी पडती है । यहां विटामिन सी, भगवान दत्तात्रेय का जप है । विटामिन सी के साथ हम अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम मल्टी विटामिन्स (अर्थात अपने जन्मानुसार पंथ के इष्टदेवता का नामजप) लेते हैं
जब हम पितृ दोष निवारण हेतु ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नामजप करते हैं; तब भगवान दत्तात्रेय का चैतन्य हमारी ओर आकर्षित होता है, इससे निम्नलिखित लाभ होते हैं :-
हमारी स्थूल एवं सूक्ष्मदेह के चारों ओर सुरक्षा-कवच निर्मित होता है, जिससे हमारे पितरों द्वारा निर्माण की गई बाधाओं से हम बच जाते हैं । ओर पितृ दोष निवारण होता है ।
हमारे पितरों का हमारे साथ जो लेन-देन है, वह चुकाने में सहायता होती है, जिससे उनका हम पर होने वाला दुष्प्रभाव घट जाता है ।
हमारे पितरों की आगे की यात्रा सुगम होने में सहायता होती है।
तथापि जप का लाभ, हमारे आध्यात्मिक स्तर तथा जप की संख्यात्मक एवं गुणात्मक मात्रा पर निर्भर करता है ।
पितृ दोष निवारण हेतु हम ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का सुरक्षा-कवच जप कष्ट की तीव्रता के अनुरूप प्रतिदिन जपने का परामर्श देते हैं, क्योंकि यह हमारे जीवन में आध्यात्मिक बाधाओं को मूल रूप से दूर करने में विदित जप है । उत्तम होगा कि हम यह जप प्रतिदिन प्रात:काल में करें, जिससे पूरे दिन आध्यात्मिक रूप से हमारा रक्षण होगा । इसके उपरांत पूरा दिन हम अपने जन्मानुसार, पंथ के इष्टदेवता का जप कर सकते हैं ।
पितरों के कष्टों की तीव्रता के अनुरूप, पितृ दोष निवारण के लिए हम ‘ श्री गुरुदेव दत्त’ के नामजप की मात्रा का सुझाव देते हैं । यह आध्यात्मिक शोध एवं ज्ञान पर आधारित है, जो हमें विश्वमन तथा विश्वबुद्धि से अतिजाग्रत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से मिलता है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें