दत्तात्रेय आसन-गायत्री शाबर मन्त्र
आसन ब्रह्मा, आसन विष्णु, आसन इन्द्र, आसन बैठे गुरु गोविन्द । आसन बैठो, धरो ध्यान, स्वामी कथनो ब्रह्म-ज्ञान । अजर आसन, वज्र किवाड़, वज्र वजड़े दशम द्वार । जो घाले वज्र घाव, उलट वज्र वाहि को खाव । हृदय मेरे हर बसे, जिसमें देव अनन्त । चौकी हनुमन्त वीर की। हनुमन्त वीर, पाँव जजीर । लोहे की कोठी, वज्र का ताला । हमारे घट-पिण्ड का गुरु देवदत्त आप रखवाला। पाय कोस अगुम कीले, पाय कोस पश्चिम कीले ।
दत्तात्रेय आसन-गायत्री शाबर मन्त्र |
पाय कोस उत्तर कोलूँ, पाय कोस दक्षिण कीलू । तिल कीलू, तिल-बाड़ी कीलूँ । अस्सी कोस की सारी विद्या की । नाचे भूत, तड़तड़ावे मसान । मेरा कील या करे उत्कील, वाको मारे हनुमन्त वीर । मेरा कील या करे उत्कील, ढाई पिण्ड भीतर मरे । मेरा दिया बाँध ट्टे, हनुमान की हाँक टूटे । रामचन्द्र का धनुष टूटे। सीता का सत टूटे । लक्ष्मण की कार छूटे । गङ्गा का नीर फूटे । ब्रह्मा का वाक टूटे । गऊ, गायत्री, ईश्वर-रक्षक । या पै ना मूल लगावे, ना लार । रक्षा करे गुरु दातार ॥१
खिन्न दाहिने, खिन्न बाएँ। खिन्न आगे, खिन्न पीछे होवे गुरु गोसाईं सिमरते । काया भङ्ग ना होवे ॥२ काल ना ढके, वाघ ना खावे ॥३ अमुक नाम सिर पर ना घाले घाव ॥४ हमारे सिर पर अलख गुरु का पाँव ॥५ रूखा बरखा, वीन हमारी, माल हमारा कूड़ा। जात हमारी सबसे ऊँची, शब्द गुरु का पूरा ॥६ चारों खानी, चार वाणी, चन्द्र-सूरज-पवन पाणी। धूनी ले आया बाल गोपाल । सब सन्तन मिल चेतावनी। बारह जागे, गढ़े निशान । हमारे सिर पर काल-जाल, जम-दूत का लगे ना दाँव ।।७।। वज्र-कासौटी बाहर-भीतर, वन में वासा अचिन्त साँप, गौहरा आवे न पास ॥८
सख्त धरती, मुक्त आकाश । घट-पिण्ड-प्राण, गुरु जी के पास ॥ रात रखे चन्द्रमा, दिन रखे सूरज, सदा रखे धरतरी । काल-कण्टक सब दूर ॥१० उगम पश्चिम कीलू, उगमी उत्तर-दक्षिण कीलूँ । अमुक नाम चले गोदावरी । लख अवधूत साथ । बाँ, चोर, सर्प और नाहर के सारे डार । रक्षा करें गुरु देवदत दातार ॥११ जो जाने आसन-गायत्री का भेद । आपे कर्ता, आपे देव ॥१२ इतना आसन-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया ॥१३ सर्व-सिद्धों में दत्तात्रेय जी कहा-अलख, अलख, अलख ॥१४
विधि-किसी अच्छे महर्त में उक्त मन्त्र का 108 बार जप करे। फिर उसका दशांश हवन ( लगभग 11 पाठ) निम्नलिखित सामग्री से करे-१ केसर, २ कस्तूरी, ३ मुस्की कपूर, ४ देसी शक्कर, ५ गाय का घी, ६ गूगल धूप बढ़िया तथा ७ चन्दन-बूरा । हर पाठ में, जहाँ संख्या १ से १४ दी हैं, 'स्वाहा' बोलकर आहुति दे । इस प्रकार १५४ आहतियाँ देनी पड़ेंगी। मन्त्र सिद्ध हो गया। अब किसी भी पीड़ित व्यक्ति के लिए १० बार मन्त्र का जप करे और एक पाठ से १४ आहुतियाँ सामग्री से दिलवा दे । भगवत्-कृपा से अप-मृत्यु भी टल जाती है । ग्रहों की शान्ति होती है।
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