Hast Samudirk Ke Anusar sadhna||हस्त सामुद्रिक के अनुसार साधन
हस्त सामुद्रिक के अनुसार साधन |
पूर्व ही बताये गये ज्योतिष सिद्धान्त में ग्रहों को तो आप पूर्ववत्त ही समझें तथा हाथ (दाहिने) में उनकी स्थिति को चित्रानुसार स्मरण कर लें। हाथ में समुद्र सी गहराइयाँ होती हैं जिन्हें कि यहाँ स्पष्ट कर पाना सम्भव नहीं है। यहाँ पर उपासना विषय पर संक्षिप्त प्रकाश डाल रहा हूँ। चित्र में दर्शाये स्थान लिखे हुए ग्रहों के होते हैं। अंगुलियों के अन्त तथा हस्त के प्रारम्भ में अर्थात् हाथ के उस स्थान पर जहाँ से अंगुली का प्रारम्भ हुआ है एक उभरा या धंसा हुआ स्थान होता है जिसे कि पर्वत कहते हैं। चित्र में दिखाये नाम उन्हीं स्थानों पर समझें और यही पर्वत उन ग्रहों को सूचित करते हैं । जो पर्वत उभरा उठा हुआ हो उसे उच्च का समझें, धंसें या दबे पर्वत को नीच का समझें तथा समतल पर्वत को मध्य की स्थिति का सूचक जानना चाहिए। शनि पर्वत के कारण विचारें कि वह व्यक्ति व्यस्त, समाज से दूर, रहस्य भरे विषय का प्रेमी, जंगल पहाड़ पर भूत-प्रेत जगाने में मस्त, जादूगर आदि होगा।
इस विषय को भी भविष्य में अलग किसी पुस्तक में विस्तृत रूप से प्रकाशित किया जायेगा। हमें आशा है कि अभी तक प्रस्तुत विषय सामग्री पाठकों के लिए चाहे वह साधक हों या न हों, लाभदायक प्रमाणित तो होगी ही, इससे उनका और भी अधिक मार्गदर्शन होगा। प्रस्तुत पुस्तक के मुख्य आकर्षण पर आप आ चुके हैं।
शमशान साधन आदि में आसन पर बैठकर सर्वप्रथम अपने शरीर को बंध लगायें जिससे कि आपकी कोई हानि न हो। किसी भी बंध आदि के न जानने पर हाथ में पीली सरसों लेकर निम्नलिखित मन्त्र बोलें
ऊँ अपक्रामन्तु ते भूता ये भूता भूतलेस्थिताः ।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नशयन्तु शिवाज्ञयाः ।
अपक्रामन्तु भूतानि, पिशाच: सर्वतो दिशम् ।
सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्म समारंभे ॥
ऊँ सर्व विघ्नानुत्सार यो सारय हुं फट् स्वाहा ॥
इसके पश्चात् अपने चारों तरफ उक्त सरसों बिखरा दें फिर बाँए पाँव से पृथ्वी पर तीन बार आघात करें। इस क्रिया को करने के बाद तीन बार ताली बजायें। “ऊँ अस्त्राय फट्" बोलते हुए दशों दिशाओं की तरफ हाथ करके चुटकी बजायें । तत्पश्चात् कर्म के लिए निश्चित दिशा की तरफ दिव्य दृष्टि से देखें और फिर आसन पर बैठ कर कार्य का शुभारम्भ करें।
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