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शनिवार, 25 जनवरी 2020

Chamtkari Maa Kali Sidha Shabar Mantra-चमत्कारी महा-काली सिद्ध मन्त्र

Chamtkari Maa Kali Sidha Shabar Mantra-चमत्कारी महा-काली सिद्ध मन्त्र



भगवती काली की कृपा- प्राप्ति का मन्त्र

चमत्कारी महा-काली सिद्ध मन्त्र
चमत्कारी महा-काली सिद्ध मन्त्र

“ॐ सत् नाम गुरु का आदेश।
 काली-काली महा-काली, 
युग आद्य-काली,छाया काली, 
छूं मांस काली। चलाए चले, बुलाई आए,
 इति विनिआस।गुरु गोरखनाथ के मन भावे। 
काली सुमरुँ, काली जपूँ, काली डिगराऊ को मैं खाऊँ।
जो माता काली कृपा करे, मेरे सब कष्टों का भञ्जन करे।”

सामग्रीः 
लाल वस्त्र व आसन, घी, पीतल का दिया, जौ, काले तिल,शक्कर, चावल, सात छोटी हाँड़ी-चूड़ी, सिन्दूर, मेंहदी, पान, लौंग, सातमिठाइयाँ, बिन्दी, चार मुँह का दिया।

उक्त मन्त्र का सवा लाख जप 40 या 41  दिनों में करे। पहले उक्त मन्त्र को कण्ठस्थ कर ले। शुभ समय पर
जप शुरु करे। गुरु-शुक्र अस्त न हों। दैनिक ‘सन्ध्या-वन्दन’ के अतिरिक्त अन्य किसी मन्त्र का जप 40  दिनों तक न करे। भोजन में दो रोटियाँ 10  या 11 बजे दिन के समय ले।3 बजे के पश्चात् खाना- पीना बन्द कर दे। रात्रि 9 बजे पूजा आरम्भ करे। पूजा का कमरा अलग हो और पूजा के सामान के अतिरिक्त कोई सामान वहाँ न हो। प्रथम दिन,कमरा कच्चा हो, तो गोबर का लेपन करे। पक्का है, तो पानी से धो लें। आसन पर बैठने से पूर्व स्नान नित्य करे। सिर में कंघी न करे। माँ की सुन्दर मूर्ति रखे और धूप-दीप जलाए।
जहाँ पर बैठे, चाकू या जल से सुरक्षा- मन्त्र पढ़कर रेखा बनाए। पूजा का सबसामान ‘सुरक्षा-रेखा’ के अन्दर
होना चाहिए। सर्वप्रथम गुरु-गणेश-वन्दना कर 1 माला (108) मन्त्रों से हवन कर। हवन के पश्चात् जप शुरु करे। जप- समाप्ति पर जप से जो रेखा-बन्धन किया था, उसे खोल दे। रात्रि में थोड़ी मात्रा में दूध-चाय ले सकते हैं। जप के सात दिन बाद एक हाँड़ी लेकर पूर्व-लिखित सामान (सात मिठाई, चूड़ी इत्यादि) उसमें डाले। ऊपर ढक्कन रखकर, उसके ऊपर चार मुख  दिया जला कर, सांय समय जो आपके निकट हो नदी, नहर या चलता पानी में हँड़िया को नमस्कार कर बहा दे। लौटते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। 31 दिनों  तक धूप-दीप-जप करने के पश्चात् 7  दिनों तक एक बूँद रक्त जप के अन्त में पृथ्वी पर टपका दे और  31 वें दिन जिह्वा का रक्त दे। मन्त्र सिद्ध होने पर इच्छित वरदान प्राप्त करे।
सावधानियाँ-
प्रथम दिन जप से पूर्व हण्डी को जल में सायं समय छोड़े और एक-एक सपताह बाद उसी प्रकार उसी समय सायं उसी स्थान पर, यह हाँड़ी छोड़ी जाएगी। जप के एक दिन बाद दूसरी हाँड़ी छोड़ने के पश्चात् भूत-प्रेत साधक को हर समय घेरे रहेंगे। जप के समय कार के बाहर काली के साक्षात् दर्शन होंगे। साधक जप में लगा रहे, घबराए नहीं। वे सब कार के अन्दर प्रविष्ट नहीं होंगे। मकान में आग लगती भी दिखाई देगी, परन्तु
आसन से न उठे। 40 से 42 वें दिन माँ वर देगी। भविष्य-दर्शन व होनहार घटनाएँ तो सात दिन जप के बाद ही ज्ञात होने लगेंगी। एक साथी या गुरु कमरे के बाहर नित्य रहना चाहिए। साधक निर्भीक व आत्म-बलवाला होना चाहिए।

संकट-निवारक काली-मन्त्र

“काली काली, महा-काली। इन्द्रकी पुत्री, ब्रह्मा की साली। 
चाबेपान, बजावे थाली। जा बैठी, पीपलकी डाली। 
भूत-प्रेत, मढ़ी मसान।जिन्न को जन्नाद बाँध ले जानी।
तेरा वार न जाय खाली। चले मन्त्र,फुरो वाचा। 
मेरे गुरु का शब्द साचा।देख रे महा-बली, तेरे मन्त्र का तमाशा। 
दुहाई गुरु गोरखनाथकी।”

सामग्रीः

 माँ काली का फोटो, एक लोटा जल, एक चाकू, नीबू, सिन्दूर, बकरे की कलेजी, कपूर की 6 टिकियाँ, लगा हुआ पान, लाल चन्दन की माला, लाल रंग के पूल, 6 मिट्टी की सराई, मद्य।

विधिः 

पहले स्थान-शुद्धि, भूत-शुद्धि कर गुरु-स्मरण करे। एक चौकी पर देवी की फोटो रखकर, धूप-दीप कर, पञ्चोपचार करे। एक लोटा जल अपने पास रखे। लोटे प चाकू रखे। देवी को पान अर्पण कर, प्रार्थना करे- हे माँ! मैं अबोध बाल तेरी पूजा कर रहा हूँ। पूजा मे जो त्रुटि हों, उन्हें क्षमा करें।’ यह  प्रार्थना अन्त में और प्रयोग के समय भी करें।अब छः अङ्गारी रखे। एक देवी के सामने व पाँच उसके आगे। 11 माला प्रातः 11 माला रात्रि 9 बजे के पश्चात् जप करे। जप के बाद सराही में अङ्गारी करे व अङ्गारी पर कलेजी रखकर कपूर की टिक्की रखे।पहले माँ काली को बलि दे। फिर पाँचबली गणों को दे। माँ के लिए जो घी का दिया जलाए, उससे ही कपूर को जलाए और मद्य की धार निर्भय होकर दे। बलि केवल मंगलवार को करे। दूसरे दिनों में केवल जप करे। होली-दिवाली-ग्रहण में या अमावस्या को मन्त्र को जागृत करता रहे। कुल 40  दिन का प्रयोग है। भूत-प्रेत-पिशाच-जिन्न, नजर-टोना- टोटका झाड़ने के लिए धागा बना कर दे। इस मन्त्र का प्रयोग करने वालों के शत्रु स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र

“डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। 
खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका।तागड़दे मस्तङ्ग, 
तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, 
गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। 
जय कालका खपर- धनी। जय मचकुट छन्दनी देव।
 जय-ज महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड- मुण्ड भण्डासुर खण्डनी, 
जय रक्त- बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। 
अमृत- यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”

विधि-
 नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः- सायं उक्त मन्त्र का 40-40 जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।

महा-काली शाबर मन्त्र

“सात पूनम काल का, बारह बरस क्वाँर।
एको देवी जानिए, चौदह भुवन- द्वार।।
१द्वि-पक्षे निर्मलिए, तेरह देवन देव।
अष्ट-भुजी परमेश्वरी, ग्यारह रुद्र सेव।।
२सोलह कल सम्पूर्णी, तीन नयन भरपूर।
दसों द्वारी तू ही माँ, पाँचों बाजे नूर।।
३नव-निधी षट्-दर्शनी, पन्द्रह तिथी जान।
चारों युग में काल का, कर काली!कल्याण।।

सामग्रीः
 काली-यन्त्र तथा चित्र, भट-कटैया के फूल-7, पीला कनेर के फूल, लौंग, इलायची-प्रत्येक 5, पञ्च- मेवा, नीम्बू-3, सिन्दूर, काले केवाँच के बीज-108, दीपक, धूप, नारियल।
विधिः
 उक्त मन्त्र की साधना यदि भगवती काली के मन्दिर में की जाए, तो उत्तम फल होगा। वैसे एकान्त में या घर पर भी कर सकते हैं। सर्व-प्रथम अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर श्रीकाली-यन्त्र और चित्र स्थापित करे। घी का चौ- मुखा दिया जलाए। पञ्चोपचार से पूजन करे। अष्ट-गन्ध से उक्त चौंतीसा-यन्त्र का निर्माण कर उसकी भी पञ्चोपचार से पूजा करें। पूजन करते समय भट-कटैया और कनेर पुष्प को यन्त्र व चित्र पर चढ़ाए। तीनों नीम्बुओं के ऊपर सिन्दूर का टीका या बिन्दी लगाए और उसे भी अर्पित करे। नारियल, पञ्च-मेवा, लौंग, इलायची का भोग लगाए, लेकिन इन सबसे पहले गणेश, गुरु तथा आत्म-रक्षा मन्त्र का पूजन औरमन्त्र का जप आवश्यक है। ‘काली- शाबर-मन्त्र’ को जपते समय हर बार एक-एक केवाँच का बीज भी काली- चित्र के सामने चढ़ाते रहें। जप की समाप्ति पर इसी मन्त्र की ग्यारह आहुतियाँ घी और गुग्गुल की दे। तत्पश्चात् एक नीम्बू काटकर उसमें अपनी अनामिका अँगुली का रक्त मिलाकर अग्नि में निचोड़े। हवन की राख, मेवा, नीम्बू, केवाँच के बीज और फूल को सँभाल कर रखे। नारियल और अगर-बत्ती को मन्दिर में चढ़ा दे तथा एक ब्राह्मण को भोजन कराए।प्रयोग के समय २१ बार मन्त्र का जपकरे। प्रतिदिन उक्त मन्त्र का 108 बार जप करते रहने से साध की सभी कामनाएँ पूर्ण होती है।


उक्त मन्त्र के विभिन्न प्रयोगः

1- शत्रु-
बाधा का निवारणः अमावस्या के दिन 1 नीम्बू पर सिन्दूर से शत्रु का नाम लिखे। 21 बार सात सुइयाँ उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित के नीम्बू में चुभो दे। फिर उसे श्मशान में जाकर गाड़ दे और उस पर मद्य की धार दे। तीन दिनों में  शत्रु बाधा समाप्त होगी।
2- मोहनः उक्त मन्त्र से सिन्दूर और
भस्म को मिलाकर 11 बार अभिमन्त्रित कर माथे पर तिलकलगाकर जिसे देखेंगे, वह आपके ऊपर मोहित हो जायेगा।
3- वशीकरणः
पञ्च-मेवा में से थोड़ा- सा मेवा लेकर 21 बार इस मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। इसे जिस स्त्री या पुरुष को खिलाएँगे, वह आपके वशीभूत हो जाएगा।
4-  उच्चाटनः
 भट-कटैया के फूल 1, केवाँच-बीज और सिन्दूर के ऊपर 11 बार मन्त्र पढ़कर जिसके घर में फेंक देंगे,
उसका उच्चाटन हो जाएगा।
5- स्तम्भनः
 हवन की भस्म, चिता की राख और 3 लौंग को 21 बार मन्त्र से अभिमन्त्रित करके जिसके घर में गाड़ देंगे, उसका स्तम्भन हो जाएगा।
6- विद्वेषणः
 श्मशान की राख, कलीहारी का फूल, 3 केवाँच के बीज पर 21 बार मन्त्र द्वारा अभीमन्त्रित करके एक काले कपड़े में बाँध कर शत्रु के आने-जाने के मार्ग में या घर के दरवाजे पर गाड़ दे। शत्रुओं में आपस में ही भयानक शत्रुता हो जाएगी।
7-  भूत-प्रेत-बाधाः
 हवन की राख सात बार अभिमन्त्रित कर फूँक मारे तथा माथे पर टीका लगा दे। चौंतिसा यन्त्र को भोज-पत्र पर बनाकर ताँबे के ताबीज में भरकर पहना दे।
8- आर्थिक-बाधाः
महा- काली यन्त्र के सामने घी का दीपक जलाकर उक्त मन्त्र का जप 21 दिनों तक 21 बार करे।

“ॐ कङ्काली महा-काली, केलि-कलाभ्यां स्वाहा।”

विशेषः- यदि उक्त मन्त्र के साथ निम्न मन्त्र का भी एक माला जप नित्य किया जाए, तो मन्त्र अधिक शक्तिशाली होकर कार्य करता है।

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