भैरवनाथ जी के रहस्य एवं साधना ।
भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है।
भैरव उत्पत्ति
उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। मुख्यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।
लोक देवता
लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है। कई समाज के ये कुल देवता हैं और इन्हें पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है। यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान भैरव किसी के शरीर में नहीं आते।
भैरव मंदिर
भैरव का प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है। काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है।
Kaal Bhairav ke Rasiya Sadhana |
काल भैरव
काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। यह भगवान का साहसिक युवा रूप है। उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है।
काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- ।। ॐ भैरवाय नम:।।
बटुक भैरव
'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।।'
अर्थात्
ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है। बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है। यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
उक्त आराधना के लिए मंत्र है- ।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
भैरव तंत्र
योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।
भैरव आराधना से शनि शांत
एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है। आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है। उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं। आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं। जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। दांत और आंत साफ रखें। पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें। अपवित्रता वर्जित है।
भैरव चरित्र
भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है।
उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है।
श्री भैरव के आठ रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।
क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है।
श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं।
दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है।
शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (१०८ बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से ४१ दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में १२ से ३ बजे का माना जाता है।
भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।
जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।
भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।
भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है।
इसके बारे मे ओर जाने
!! भैरव साधना !!
मंत्र संग्रह पूर्व-पीठिका
मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से !!
पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से !
जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ !!
जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए !
शिव बोले, आपद्-उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र मैं बतलाता,
देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति-सुख पाता !!
*!! ध्यान !!*
*सात्विकः-*
बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,
घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,
दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं !
भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है !
कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ !
रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ !!
*राजसः-*
नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,
रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है !
नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं !
शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं !
रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,
ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित !!
*तामसः-*
तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,
पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर !
डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,
अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते !
दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,
भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित !!
!! तांत्रोक्त भैरव कवच !!
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः !
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु !!
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा !
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः !!
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे !
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः !!
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा !
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः !!
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः !
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः !!
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु !
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च !!
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः !
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः !!
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः !
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा !!
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा !
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा !!
!! भैरव वशीकरण मन्त्र !!
“ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक- नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा ”
“ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा ”
“ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर ! गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश ! जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण ! पकड़ पलना ल्यावे ! काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण ! फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा !”
ॐ भैरवाय नम: !!
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवायनम:!
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ !!
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा !!
!
! श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत् !!
विनियोग -
ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः , त्रिष्टुप्छन्दः , त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं , सः शक्तिः, वं कीलकं मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः !!
अब बाए हाथ मे जल लेकर दाहिने हाथ की उंगलियों को जल से स्पर्श करके मंत्र मे दिये हुए शरीर के स्थानो पर स्पर्श करे !!
!! ऋष्यादिन्यास !!
श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि !
त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे !
श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान
स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः !
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये !
सः शक्तये नमः पादयोः !
वं कीलकाय नमः नाभौ !
मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं
स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे !
मंत्र बोलते हुए दोनो हाथ के उंगलियों को आग्या चक्र पर स्पर्श करे ! अंगुष्ठ का मंत्र बोलते समय दोनो अंगुष्ठ से आग्या चक्र पर स्पर्श करना है !!
!! करन्यास !!
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः !
ऐं तर्जनीभ्यां नमः !
क्लां ह्रां मध्याभ्यां नमः !
क्लीं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः !
क्लूं ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां नमः !
सं वं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः !
अब मंत्र बोलते हुए दाहिने हाथ से मंत्र मे कहे गये शरीर के भाग पर स्पर्श करना है !!
!! हृदयादि न्यास !!
आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः !
अजामल वधाय शिरसे स्वाहा !
लोकेश्वराय शिखायै वषट् !
स्वर्णाकर्षण भैरवाय कवचाय हुम् !
मम् दारिद्र्य विद्वेषणाय नेत्रत्रयाय वौषट् !
श्रीमहाभैरवाय नमः अस्त्राय फट् !
रं रं रं ज्वलत्प्रकाशाय नमः इति दिग्बन्धः !!
अब दोनो हाथ जोड़कर ध्यान करे !!
(ध्यान मंत्र का उच्चारण करें !!
जिसका हिन्दी में सरलार्थ नीचे दिया गया है ! वैसा ही आप भाव करें )
ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम् !
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम् !!
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम् !
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम् !!
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः !
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा !!
हिन्दी भावार्थ :- श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार (सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं ! उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं ! उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं ! उनके तीन नेत्र हैं ! चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण - माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है ! वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं ! आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें।
मानसोपचार पुजन के मंत्रो को मन मे बोलना है !
!! मानसोपचार पूजन !!
लं पृथिव्यात्मने गंधतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं गंधं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !
हं आकाशात्मने शब्दतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं पुष्पं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !
यं वायव्यात्मने स्पर्शतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं धूपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !
रं वह्न्यात्मने रूपतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं दीपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !
वं अमृतात्मने रसतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं अमृतमहानैवेद्यं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !
सं सर्वात्मने ताम्बूलादि सर्वोपचारान् पूजां श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !!
!! मंत्र !!
ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम: !!
मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का एक पाठ अवश्य करे !!
!! श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्त्रोत् !!
!! श्री मार्कण्डेय उवाच !!
भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !
पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः !!
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं !
तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् !!
तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !!
!! श्री नन्दिकेश्वर उवाच !!
इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये !!
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् !
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् !!
अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् !
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् !!
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः !
न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा !!
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने !
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च !!
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् !
स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः !!
श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् !!
!
! विनियोग !!
ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः !!
!! ध्यान !!
मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते !
दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः !!
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् !
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः !!
!! स्त्रोत् -पाठ !!
ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने !
नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने !!
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने !
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः !
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः !!
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः !
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे !!
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने !
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः !!
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने !
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः !!
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः !
नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः !!
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे !
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः !
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः !
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः !!
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः !
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः !!
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने !
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे !!
नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः !
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः !!
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः !
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने !!
रुद्र- लोकेश- पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च !
नमोऽजामल- बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते !!
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने !
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः !!
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते !
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने !!
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः !
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः !!
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः !
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे !!
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः !
नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः !!
नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे !
नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः !!
नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने !
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने !!
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः !
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः !!
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने !
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः !!
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने !
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने !!
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः !
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे !!
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः !
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने !!
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने !
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे !!
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने !
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने !!
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने !
नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः !!
स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् !
प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा !!
!! फल-श्रुति !!
श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् !
मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् !!
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते !
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् !!
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् !
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः !!
संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः !
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः !
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः !
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः !!
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् !
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव !!
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् !
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः !!
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः !
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण- कारकः !!
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा !
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं !!
!! श्री भैरव चालीसा !!
!! दोहा !!
श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ !
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ !!
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल !
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल !!
जय जय श्री काली के लाला !
जयति जयति काशी- कुतवाला !!
जयति बटुक भैरव जय हारी !
जयति काल भैरव बलकारी !!
जयति सर्व भैरव विख्याता !
जयति नाथ भैरव सुखदाता !!
भैरव रुप कियो शिव धारण !
भव के भार उतारण कारण !!
भैरव रव सुन है भय दूरी !
सब विधि होय कामना पूरी !!
शेष महेश आदि गुण गायो ! काशी-कोतवाल कहलायो !!
जटाजूट सिर चन्द्र विराजत !
बाला, मुकुट, बिजायठ साजत !!
कटि करधनी घुंघरु बाजत !
दर्शन करत सकल भय भाजत !!
जीवन दान दास को दीन्हो !
कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो !!
वसि रसना बनि सारद-काली !
दीन्यो वर राख्यो मम लाली !!
धन्य धन्य भैरव भय भंजन !
जय मनरंजन खल दल भंजन !!
कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा !
कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा !!
जो भैरव निर्भय गुण गावत !
अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत !!
रुप विशाल कठिन दुख मोचन !
क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन
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