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सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

Aghor sadhan mantra

Aghor sadhan mantra- अघोर-साधन मन्त्र 

अघोर तंत्र के क्षेत्र में सुरक्षा व किसी प्रकार की बाधा व  घर में अंशाति भूप प्रेत या काला जादू किया कराया गया जादू आदि को दूर करने के लिए एक रामबाण साबित सिद्ध होता है।

Aghor sadhan mantra
Aghor sadhan mantra


इस मंत्र की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है इस मंत्र में अपारशक्ति है | सामान्य जीवन में व्यक्ति को रोग,  दोष, भूत, प्रेत, नजर, टोना -टोटका, दुष्प्रभाव, ग्रह दोष अथवा किसी संबंधी, शत्रु या पड़ोसी द्वारा मारण - कृत्य या रोजगार - बंदी का टोटका करा देना हाथी जैसी बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है|  यह शाबर मंत्र का प्रयोग ऐसी समस्याओं के निवारण के लिए किया जाता है | यह साबर मंत्र शत्रु द्वारा द्वारा कराए गए मारण - कृत्य  के प्रभाव को भी नष्ट कर देता है

मंत्र

ॐ गुरुजी चण्ड पड़े, तो धरती लाजे। हाड गले, तो गोरख लाजे । हंस उड़े, तो नूरी-जन लाजे । परले जाय, तो सत्-गुरु लाजे । जाळ कू - रखे? काळ कू भखे? अपनी काया आप रखे। आदकां अलीक, पवन की भट्ठी। माता कुँवारी, पिता जती। जलहु बाळा, उलट अलील । पळी काया, राज-हंस परम-हंस पाया । लो मेलो, लो मेलो। बजर-बजर में पानी, गुंजत अलील । गुपत जुपत दो वाणी। आद की जोत, नाद की काया । नाद-बुन्द से  अघोर पाया। अघोर बीज-मन्त्र जपो जाप । ॐ गुरुजी अघोर-अघोर महा-अघोर। माता तो पिता अघोर । बहन तो भाई अघोर । गुरु तो चेला   अघोर । देवळ तो मस्जीद अघोर । 

मुल्ला की बाँग अघोर । काजी का कुरान अघोर । ब्रह्मा का वेद अघोर । नाद अघोर, बीन्द अघोर । शङ्ख अघोर, शङ्खान अघोर, रूप अघोर । चन्द्र अघोर, सूरज अघोर । नव लख तारा अघोर । अढार भार, वनस्पति अघोर । पूर्व अघोर, पश्चिम अघोर । उत्तर अघोर, दक्षिण अघोर । बजर मेरी काया अघोर । अमास की रात अघोर । पेला तो पलक अघोर । दुजा क्रोध अघोर । त्रीजा तो त्रण भुवन अघोर । चोथा तो चार वेद अघोर । पाँच पाँच पाण्डव अघोर । छट्ठा छ दर्शन अघोर । सातमा तो सात सागर अघोर । आठमा तो आठ कुळ-पर्वत अघोर । नवमा तो नव-नाथ अघोर । दशमा तो दश अवतार अघोर । अगियारा तो रुद्र अघोर । बारा तो बार पन्थ अघोर । तेरा तो तिलक अघोर । चैंदा तो भवन अघोर । पंदरा तो तिथी अघोर । सोला तो सोळ कळा अघोर । सतरा तो सिता अघोर। अढारा तो अढार भार वनस्पति अघोर । ओगणीसा तो काळ अघोर । वीसा तो विष अघोर । 

एकवीसा तो ब्रह्माण्ड अघोर । कहे अलखजी, सुणे पार्वतीजी। अवतार लेकर अघोर में अषोर मीलाया, नाभी में वसे मुळ त्रीगुटी वसे गुणेश । बजरी जरे, बजरी जरे, जरगीए काम-क्रोध । पाँच नाद की मुद्रा जरे । पेरु बजरङ्ग लंगोट काया का पारा ना जरे । सिद्धो कबी न आवे । जम की चोट । चन्दा घर चड़े, सुरज घर मीले । सो जोगी एक दिन में एक सो आठ जपे । काटा काटे नहीं। जलाया जले नहीं। डुबाया डुबे नहीं। जमीन गाळ दे, तो उलटा होकर निकल जाए। सुखा दे रस्सी, पे तो हरा हो जाय । अघोर मन्त्र-जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में बेठ महादेव जी ने पार्वती को सुनाया। जपन्ते कपन्ते मोक्ष पावन्ते । ॐ नमः शिवाय।

विधि-

उक्त मन्त्र एक ही दिन में एक सौ आठ बार जपना होता है। शिव-रात्रि, कृष्णा चतुर्दशी (काली चैदस) की रात को 108 बार जपने से सिद्ध हो जाता है। फिर प्रयोग करने में एक बार मन्त्र पढ़कर जल को फूंक मारे । इस पानी को पीने से पूर्ण रक्षा होती है। यह अनुभूत सिद्ध प्रयोग है।


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