बगलामुखी साधना मंत्र बगलामुखी
कल्प_विद्या_विधान
बैशाख_शुक्ल_अष्टमी(गुरुवार 6:58AM से शुक्रवार 5:50AM तक रहेगी) को बगलामुखी जयंती मनायी जाती हैं। अतः ब्रम्हास्त्र महाविद्या बगलामुखी पीताम्बरा जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं संप्रेषित हैं।
माँ बगलामुखी कल्प विधान द्वारा मनुष्य किसी भी प्रकार की समस्या के समाधान , जीवन के हर छेत्र में उन्नति , विद्याप्राप्ति ,बाधा निवारण ,शत्रु संघार ,बीमारी दुर्घटना से बचाव ,कोर्ट कचहरी के मुकदमे मैं विजय की प्राप्ति ,आदि हर कार्य केलिए अचूक साधन है। इसका प्रयोग नियम से करें मुझे पूर्ण विश्वाश है माँ की कृपा से आपके कार्य सिद्ध अवश्य होंगे।
बगलामुखी साधना मंत्र बगलामुखी |
इसमें माँ बगलामुखी का सर्वांग पूजन आगे दी विधि के अनुसार करें। सर्वप्रथम 3 बार मूलमंत्र से प्राणायाम करें बाएं नथुनेसे धीरे-धीरे सांस खींच कर उसे तब तक रोके रहे जबतक छटपटाहट महसूस न होने लगे फिर इसे दांए नथुने से धीरे-धीरेबाहर छोडे़ पुनः दांए से खींचकर बाए नथुने से सांस छोडें यह एक प्राणायाम हुआ, इस प्रकार तीन बार कर, मूल मंत्र का108बार जाप कर, दिग्बन्धन के समय सम्बन्धित दिशा में चुटकी बजाए-
दिग्बन्धन
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं श्यामा माँ पूर्वतः पातु।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आग्नेय्यां पातु तारिणी।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं माहविद्या दक्षिणे तु।
ऊ ऐं ह्लीं श्रींनैर्ऋत्यां षोडशी तथा।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भुवनेशी पश्चिमयाम्।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वायव्यां बगलमुखी।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं उत्तरे छिन्नमस्ताच।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऐशान्यां धूमावती तथा।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऊर्घ्व तु, कमला पातु।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवता।।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रींअद्यस्तात् चैव मातङगी।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं सर्वदिग् बगलामुखी।।
विनियोग - विनियोग बोल कर जल पृथ्वी पर डाले। दांए हाथ में जल लेकर
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ब्रह्मास्त्र सिद्ध प्रयोग स्त्रोत मन्त्रस्य भगवान नारद ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, हृं बीजम् ई शक्ति, लंकीलकं,
मम सर्वार्थ-साधन-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः।
फिर सम्बन्धित स्थानो को छुए
ऊँ भगवते नारदाय ऋषये नमः शिरसि ,
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः श्यामा देव्यै नमः ललाटे।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः तारा देव्यैनमः कर्णयोः।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः महा विद्यायै नमः भुरवोर्मध्ये ।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः षोडशी देव्यै नमः नेत्रयो।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः श्री बगला मुखी देव्यै नमः मुखे।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः बगला भुवनेश्वरीभ्यां नमः नासिकयोः।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः छिन्न मस्ता देव्यै नमः नाभौ।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लःधूमावती देव्यै नमः कटयाम्।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः कमला देव्यै नमः गुहृो।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः श्री मातंगी देव्यै नमःपादयो।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः बीजाय नमः नाभौ।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः कीलकाय नमः सर्वाङगे।
मम सर्वार्थ साधनेबगला देव्यै जपे विनियोगः नमः । (जल पृथ्वी पर डाल दे)।
करन्यास
ऊँ ह्लां बगलामुखी अडगुष्ठाभ्यां नमः।
ऊँ ह्लीं बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः।
ऊँ ह्लूं बगलामुखी मध्यमाभ्यां नमः।
ऊँ ह्लैंबगलामुखी अनामिकाभ्यां नमः।
ऊँ ह्लौं बगलामुखी कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऊँ ह्लः बगलामुखी करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयदिन्यास
ऊँ ह्लां हृदयाय नमः। (हृदय को दांए हाथ से स्पर्श करें)
ऊँ ह्लीं बगलामुखी शिरसे स्वाहा।(सिर का स्पर्श करें)
ऊँ ह्लूं सर्वदुष्टानां शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श करें)
ऊँ ह्लैं वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्। (कवच बनाएं)
ऊँ ह्लौं जिह्वां कीलय्नेत्रयाय वौषट। (नेत्रों का स्पर्श करें)
ॐ ह्लः अस्त्राय फट
(सिर के पीछे से, दाए हाथ से चुटकी बजाते हुए, दांए हाथ की गदेलीपर, बांए हाथ की तर्जनी व मध्यमा से तीन बार ताली बजाए।)
कवच - दांए हाथ की उंगलियाँ बाए कंधे पर रखे व ठीक इसका उल्टा अर्थात् बांए हाथ की उगलियाँ दाहिने कंधे पर रखे,इस भांति सीने पर कवच की मुद्रा बनाते हैं।
ध्यान
सौवर्णासन -संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं,
हेमाभाङग- रूचिं शशाङक- मुकुटां सच्चम्पक-स्त्रग्युताम्।
हस्तैर्मुद्गर -पाश- वज्र- रसनाः संविभ्रतीं भीषणाम ।
र्व्याप्ताङगीं बगलामुखी त्रि-जगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत।।
यन्त्रोद्वार
त्रिकोणं चैव षट्-कोणं, वसु-पत्रं ततः परम्।
पुनश्च वसु-पत्रं, वर्तुलं च प्रकल्पयेत्।।
षोडशारं ततः पश्चात्, चतुरस्त्रं विधीयते।
वर्तुलं चतुरस्तं च, मध्ये मायां समालिखेत्।।
नोट :- माँ बगलामुखी के उपरोक्त यन्त्रोंद्वार वाला ही यंत्र प्रयोग करें, बाजार में इनकेविभिन्न प्रकार के यंत्र मिलते हैं।इसकी विधिवत् प्राण प्रतिष्ठा कर, सर्वांग पूजन करते हैं। पीले वस्त्रपर प्राण प्रतिष्ठित यंत्र स्थापित कर जहाँ-जहाँ पूजयामि हैवहाँ-वहाँ पुष्प की पंखुडियाँ सामने प्लेट मेंडालते जाए व तर्पयामि भी जल से करते रहें।
आदौ-त्रिकोण देवताः पूजयेत्
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं क्रोधिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं स्तंभिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चामर धारिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
पुनस्त्रि कोणे
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ओडयान पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जालन्धर पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कामगिरि पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अनन्त नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।ऊँ ऐं ह्लीं श्री कण्ठ नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं दन्तात्रेय नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ षट्कोणे
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं सुभगायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भग वाहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लींश्रीं भग मालिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भग शुद्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भगपत्न्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ वसुपत्रे
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ब्राह्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं माहेश्वर्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रींकौमार्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वैष्णव्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वाराहौै स्वाहापूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं इन्द्राण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चामुण्डायै स्वाहा पूजयामि नमःतर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ द्वितीय वसुपत्रे -
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं विजयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अपराजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ पत्राग्रे
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं असिताङग भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं रूरू भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चण्ड भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं क्रोध भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं उन्मन्त भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कपालि भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भीषण भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं संहार भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
षोडश दले
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगला मुख्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चचलाये स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अचलायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वश्यायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कालिकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कल्मषायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं छात्रयै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं काल्पान्तायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं शाकिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अष्ट गन्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भोगेच्छायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भाविकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
मन्त्र पाठ -108 बार पाठ कर, स्त्रोत का पाठ करें।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगला मुखि सर्व दुष्टानां वश्यं कुरू कुरू कलीं कलीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा। ऊँ ह्रलीं बगलामुखि श्रीबगलामुखि दुष्टान् भिन्धि भिन्धि, छिन्धि छिन्धि, पर मन्त्रान् निवारय निवारय, वीर चंक्र छेदयछेदय, वृहस्पति मुखं स्तम्भय स्तम्भय, ऊँ ह्रीं अरिष्ट स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा, ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुंफट् स्वाहा। (108 बार पाठ करें)
स्त्रोत्र
ब्रह्मास्त्रां प्रवक्ष्यामि बगलां नारद सेविताम्।
देव गन्धर्व यक्षादि सेवित पाद पङकजाम्।।
त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या सर्व शत्रु वशङकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरीमारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लां द्राविणि द्राविणि भ्रामिणि भ्रामिणी एहि एहि सर्व भूतान् उच्चाटय उच्च्चाटय सर्व दुष्टान् निवारयनिवारय भूत प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनीः छिन्धि छिन्धि, खड्गेन भिन्धि भिन्धि मुद्गरेण संमारयसंमारय, दुष्टान्, भक्षय-भक्षय, ससैन्यं भूपतिं कीलय मुख स्तम्भनं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
आत्म-रक्षा ब्रह्म-रक्षा, विष्णु-रक्षा रूद्र-रक्षा, इन्द्र-रक्षा, अग्नि-रक्षा, यम-रक्षा, नैर्ऋत-रक्षा, वायु-रक्षा, कुवेर-रक्षा, ईशान-रक्षा, सर्व-रक्षा, भूत-प्रेत, पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-रक्षा-अग्नि वैताल-रक्षा गण-गन्धर्व-रक्षा, तस्मात् सर्वरक्षां कुरू कुरू, व्याध्र-गज-सिंह रक्षागण तस्कर-रक्षा, तस्मात् सर्व बन्ध्यामि ऊँ ह्लां बगलामुखि हुँ फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लीं भो बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिंविनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगलामुखि एहि-एहि पूर्व दिशायां बन्धय-बन्धय इन्द्रस्य मखंस्तम्भ-स्तम्भ इन्द्र शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं पीताम्बरे एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय अग्नि मुखंस्तम्ीाय स्तम्भय अग्नि शस्त्र निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दयमर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महर्षि मर्दिनि एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय समस्यअग्नि स्तम्भय स्तम्भय यम शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दयमर्दय ऊँ ह्लीं हज्जृम्भणं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चण्डिके एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय नैऋत्य मुखंस्तम्भय नैऋत्य शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कराल नयने एहि-एहि पश्चिम दिशायां बन्धय-बन्धय वरूण मुखंस्तम्भय वरूण शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लींवश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कालिके एहि-एहि वायव्य दिशायां बन्धय-बन्धय वायु मुखंस्तम्भय वायु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लींवश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महा त्रिपुर सुन्दरी एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय कुवेरमुखं स्तम्भय कुबेर शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं महाभैरवि एहि एहि ईशान दिशायां बन्धय बन्धय ईशान मुखं स्तम्भयस्तम्भय ईशान शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलींवश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं गाङगेश्वरि एहि एहि ऊर्ध्व दिशायां बन्धय बन्धय ब्रह्मणं चतुर्मखंस्तम्भय स्तम्भय ब्रह्म शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दयऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ललितादेवी एहि एहि अन्तरिक्ष दिशायां बन्धय बन्धय विष्णु मुखंस्तम्भय स्तम्भय विष्णु शस्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दयमर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं चक्रधारिणि एहि एहि अधो दिशायां बन्धय बन्धय वासुकि मुखं स्तम्भयस्तम्भय वासुकि शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँहलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
दुष्ट मन्त्रम् दुष्ट यन्त्रं दुष्ट पुरूषम् बन्धयामि शिखां बन्ध ललाट बन्ध भ्रवौबन्ध नेत्रे बन्ध कर्णों बन्ध नासौ बन्ध ओष्ठी बन्ध अधरौ बन्ध जिह्वां बन्ध रसनां बन्ध बुद्धि कष्ठम्बन्ध हृदयं बन्ध कुक्षि बन्ध हस्तौ बन्ध नाभि बन्धा लिङगम् बन्ध गुहां बन्ध ऊरू बन्ध जानू बन्ध जङघे बन्ध गुल्फौ बन्ध पादौ बन्ध स्वर्ग-मृत्युं-पातालं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि इन्द्राय सुराधिपतये ऐरावत् वाहनाय श्वेत वर्णाय वज्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् नाशय नाशय विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि अग्नेय तेजोधिपतये छाग वाहनाय रक्तवर्णाय शक्ति हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि यमाय प्रेताधिपतये महिष वाहनाय कृष्ण वर्णायदण्ड हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वरूणाय जलाधिपतये मकर वाहनाय श्वेत वर्णाय पाश हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वायव्याय मृगवाहनाय ध्रूम वर्णाय ध्वजा हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ईशानाय भूताधि पतये वृषभ वाहनाय कर्पूर वर्णाय त्रिशूल हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ब्रह्मणे ऊर्ध्व दिग्लोकपालाधि पतये हंस वाहनायश्वेत वर्णाय कमण्डलु हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वैष्णी सहिताय नागाधिपतये गरूण वाहनाय श्यामवर्णाय चक्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखंस्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ नमो भगवते पुण्य पवित्रे स्वाहा।
ऊँ ह्लीं बगलामुखि नित्यम् एहि एहि रवि मण्डल मध्याद् अवतर अवतर सानिध्यं कुरू कुरू। ऊँ ऐं परमेश्वरीम् आवाहयामि नम्। मम् सानिध्यं कुरू। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुम् फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बगले चतुर्भुजे मुद्धरशर संयुक्ते दक्षिणेजिह्वा व्रज संयुक्ते वामे श्री महाविद्ये पीत वस्त्रे पच्च महाप्रेताधि रूढे सिद्ध विद्याधर बन्दिते ब्रह्मविष्णु रूद्र पूजिते आनन्द स्वरूपे विश्व सृष्टि स्वरूपे महा भैरव रूप धारिणि स्वर्ग मृत्यु पाताल सतम्भिनि वाम मार्गाश्रिते श्री बगले ब्रह्म विष्णु रूद्र रूप निर्मिते षोडशकला परिपूरिते दानावरूप सहस्त्रादित्य शेभिते त्रिवर्णे एहि एहि हृदयं प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भ स्तम्भ अन्य भूत पिशाचान्खादय खादय अरिसैन्यं विदारय विदारय पर विद्यां परचक्रं छेदय छेदय वीर चक्रं धनुषांसंभारय संभारय त्रिशूलेन् छिन्धि छिन्धि पाशेन बन्धय बन्धय भूपतिं वश्यं कुरू कुरू संमाहेय-संमोहय बिना जाप्येन सिद्धय सिद्धय बिना मन्त्रंण सिद्धिं कुरू कुरू सकल दुष्टान् घातय-घतय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरू-कुरू सकल कुल राक्षसान् दह दह पच पच मथ मथ हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय भक्षय भक्षय मां रक्ष रक्ष विस्फाटकादीन् नाश्य नाशय ऊँ ह्रीं विषम ज्वरं नाशय-नाशय विषं निर्विष कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पंद स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धि विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहा।
ऊँ बगलामुखि स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे स्वाहा। ऊँ त्रिपुर भैरवि स्वाहा। ऊँ विजयायैस्वाहा। ऊँ जयायै स्वाहा। ऊँ शारदायै स्वाहा। ऊँ सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै स्वाहा। ऊँ विन्घ्य वासिन्यैस्वाहा। ऊँ त्रिपुर सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गाये स्वाहा। ऊँ भवान्यै स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै स्वाहा। ऊँ महामायायै स्वाहा। ऊँ कमल लोचनायै स्वाहा। ऊँ तारायै स्वाहा। ऊँ योगिन्यै स्वाहा। ऊँ कौमार्यै स्वाहा। ऊँशिवायै स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लीं शिव तत्व व्यापिनि बगलामुखि स्वाहा। ऊँ ह्लीं माया तत्व-व्यापिनिबगलामुखि हृदयाय स्वाहा। ऊँ ह्लीं विद्या तत्व व्यापिनि बगलामुखि शिरशे स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः शिरो रक्षतु बगलामुखि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः भालं रक्षतु पीताम्बरे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नेत्रे रक्षतु महा भैरवि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कर्णों रक्षतु विजये रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नासौ रक्षतु जये रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वदनं रक्षतु शारदे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः स्कनधौ रक्षतु विन्घ्यं रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बाहु रक्षतु त्रिपुर सुन्दरि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः करौ रक्षतु दुर्गे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उदरं रक्षतु भुवनेश्वरि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नाभिं रक्षतु महामाये रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कटिं रक्षतु कमल लोचने रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उरौ रक्षतु तारे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः संर्वाङगे रक्षतु महातारे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः अग्रे रक्षतु येागिनि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः पृष्ठे रक्षतु कौमारि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः दक्षिण पार्श्वे रक्षतु शिवे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वाम पार्श्वे रक्षतु इन्द्राणि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ गां गीं गूं गैं गौं गः गणपतये सर्व जन मुख स्तम्भनाय आगच्डछ आगच्छमम विध्नान् नाशय नाशय दुष्टं खादय खादय दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकाल मृत्युं हन हनभो गणाधिपते ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
हवन ,, जहाँ-जहाँ स्वाहा है आहुतियां देते रहें।
एक हजार पाठ के उपरान्त यह पाठ स्वतः चलने लगता है, भगवती के यंत्रकी पंचोपचार पूजन कर, रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठे व अपनी त्रिकुटि के मध्य में ध्यान रखते हुए पाठ करें कैसा भी आप पर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसको यह ध्वस्त कर देता है व अभिचारिक व्यक्ति को दंड भी मिल जाता है। इस पाठ को आप अपनी दैनिक पूजा में यदि स्थान देते हैं तो भगवती आप की पूरी सुरक्षा ही नहीं करती वरन् बहुत कुछ दे देती है, जिसे स्वयं आप अनुभव करेंगे, धर्मता पूर्वक क्रमशः आगे बढ़ते रहें, भगवती आप की प्रत्येक मनोकामनाओं को पूर्ण करेगी।एक वर्ष में ही आप शक्ति सम्पन्न हो जाएगें। ऐसा अनुभवी साधकों ने स्वीकारा हैं!
कौन है बगलामुखी मां, क्या है उनकी महाविद्या का रहस्य
कौन है मां बगलामुखी
मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए !
देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.पीताम्बरा की उपासना से मुकदमा में विजयी प्राप्त होती है। शत्रु पराजित होते हैं। रोगों का नाश होता है। साधकों को वाकसिद्धि हो जाती है। इन्हें पीले रंग का फूल, बेसन एवं घी का प्रसाद, केला, रात रानी फूल विशेष प्रिय है। पीताम्बरा का प्रसिद्ध मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया और नलखेडा(जिला-शाजापुर) और आसाम के कामाख्या में है।
कैसे करें मां बगलामुखी की साधना
माँ बगलामुखी की साधना करने के लिए सबसे पहले एकाक्षरी मंत्र ह्ल्रीं की दीक्षा अपने गुरुदेव के मुख से प्राप्त करें। एकाक्षरी मंत्र के एक लाख दस हजार जप करने के पश्चात क्रमशः चतुराक्षरी, अष्टाक्षरी , उन्नीसाक्षरी, छत्तीसाक्षरी (मूल मंत्र ) आदि मंत्रो की दीक्षा अपने गुरुदेव से प्राप्त करें एवं गुरु आदेशानुसार मंत्रो का जाप संपूर्ण करें।यदि एक बार आपने यह साधना पूर्ण कर ली तो इस संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते। यदि आप भोग विलास के पीछे दौड़ेंगे तो आपकी यह दौड़ कभी भी समाप्त नहीं होगी। लेकिन यदि आपका लक्ष्य प्रभु प्राप्ति होगा तो भोग विलास स्वयं ही आपके दास बनकर आपकी सेवा करेंगे। मानव जन्म बड़ी मुश्किल से प्राप्त होता है। इसे व्यर्थ ना गँवाये। हम सभी जानते है कि हम इस संसार से कुछ भी साथ लेकर नहीं जायेगे। यदि आपने यहाँ करोड़ो रुपये भी जोड़ लिए तो भी वो व्यर्थ ही हैं जब तक आप उस परमपिता को प्राप्त नहीं कर लेते। उस परमात्मा कि शरण में जो सुख है वह सुख इस संसार के किसी भी भोग विलास में नहीं है
क्या है सामान्य बगलामुखी मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है. यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं. मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है.
जानिए श्री सिद्ध बगलामुखी देवी महामंत्र को
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे —
1. मधु. शर्करा युक्त तिलों से होम करने पर मनुष्य वश में होते है।
2. मधु. घृत तथा शर्करा युक्त लवण से होम करने पर आकर्षण होता है।
3. तेल युक्त नीम के पत्तों से होम करने पर विद्वेषण होता है।
4. हरिताल, नमक तथा हल्दी से होम करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
कैसे करें मां बगलामुखी पूजन
माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करने चाहिए. साधना अकेले में, मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए. पूजा करने के लुए पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें.इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें. इस पूजा में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है मंत्र- सिद्ध करने की साधना में माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें.
इस अवसर पर मां बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए इस प्रकार पूजन करें-
साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-
संकल्प
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।
यह हें माँ बगलामुखी मंत्र —-विनियोग –
श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए….
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार…..
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें-
गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।
इसके बाद गंध, चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें।
तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें-
नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।
भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।
आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें-
गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं।
पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं।
धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।
दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।
नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
अब इस प्रकार प्रार्थना करें-
जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।
अब क्षमा प्रार्थना करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें।
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