धूमावती कवचम्
घर में भूत प्रेत हो और घर में उन्नति ना हों रही हो। तो हमें महाविधा धूमावती कवच मंत्र का उपयोग करना चाहिए। हमें बरकत नहीं हो रहा है शत्रु का डर हो। कलह है । दरिद्रता हो। दुष्ट शक्ती परेशान करता हो किसी कार्य में बार बार बाधा आए। किसी बिमारी से लंबे समय से परेशान हैं तो हमें धूमावती तंत्र का उपयोग करना चाहिए इस कवच नित्य शुद्ध हो कर सुबह शाम या रात्रि काल में पाठ किया जाए अधिक लाभ मिलता है।
पूजा में दान और दक्षिणा अवश्य प्रदान करें।
धूमावती कवचम् |
बाकी महा विद्या की दक्षिणा को किसी गरीब को या पशु पक्षी को चारा खरीद कर खिला सकते। जिस से आप ऋण मुक्त बन साधना में लाभ पा सकते है। धन का उपयोग करना सीखे। दान में दी गई शक्ति अप को और मजबूत बनाएगा।
श्री पार्वत्युवाच
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया ।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥१॥
श्री भैरव उवाच
शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम् ॥२॥
ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिनः ।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावतः ॥३॥
ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य पिप्पलाद ऋषिः निवृत छन्दः ,
श्री धूमावती देवता, धूं बीजं ,स्वाहा शक्तिः ,धूमावती कीलकं , शत्रुहनने पाठे विनियोगः ॥
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु ॥१॥
दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥२॥
मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥३॥
चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥४॥
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥५॥
सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम् ॥६॥
न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः ।।७॥
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत् । ७.१।
॥ इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं सम्पूर्णम् ॥
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