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रविवार, 25 जुलाई 2021

Nath Sidha Sangliya mantra

 नाथसिद्ध सांगलिया मंत्र

एक पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान शंकर माता पार्वती के साथ लोक भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते हुए दोनों एक घोर भयानक निर्जन प्रदेश में आए। वहां उन्होंने देखा कि एक साधक गुफा में बैठा मंत्र साधना में लीन है और एक मंत्र का निरंतर जाप कर रहा है। उसका मंत्र जाप सुनकर भगवान शंकर चौंक गए और करुणा भरी दृष्टि से पार्वतीजी की ओर देखकर बोले, "सती! यह साधक तो अशुद्ध उच्चारण कर रहा है। इसका अच्छा फल तो मिलेगा नहीं, उल्टे यह मृत्यु को प्राप्त करेगा।"

Nath Sidha Sangliya mantra
Nath Sidha Sangliya mantra


पार्वती बोलीं, "भगवन! इसके जन्मदाता तो आप ही हैं। आपने मंत्र को इतना क्लिष्ट क्यों बना दिया। यदि यह मर गया, तो इसका दोष आपका हा लगेगा।" भगवान शंकर अपनी भार्या पार्वती का यह तर्क सुनकर मौन हो गए। फिर कुछ क्षण बाद बोले, "तुम ठीक कहती हो पार्वती! इनका सरल रूप भी हाना चाहिए। अच्छा, मैं उपाय करता हूं।"

वह अधेड़ साधु का वेश धर उसके पास गए। उन्होंने उसे अशुद्ध जापर से रोका और सरल मंत्र बतलाया। इस प्रकार उन्होंने अपना सपूणम करके उसे दे दिया। बाद में वह साधक सिद्ध अथवा नाथ कहा संप्रदाय' का वह पहला नाथ था।

नाथ के विशेष कृपापात्र सांगलिया विख्यात चौरासी नाथ सिद्धों में। शाबर मंत्रों के प्रकाशन में उनका भी बहुत सहयोग रहा है। निम्नलिखित मंत्र (इसे जंजीरा भी कहते हैं) के वह रचयिता हैं, इसलिए यह  है। इस मंत्र के जितने लाभ हैं, उन सबकी गिनती करना कठिन उनके नाम पर पड़ा है। इस मंत्र के जितने हो जाता है।

मंत्र इस प्रकार है

ॐगरुजी सेत घोड़ा सेत पलान चढ्या बाबा महमदा पठान कोल हिंद मुसलमान, 

कोल का बांध्या जमीन आसमान, तारिया गुरु, जागिया ससाण. मैं सेया बाबा रहमान, 

तले धरतरा धार धरावे ऊपर अमर सकल पर सये. सरभंग पुन सकल पर वापे,

 सरभंग इन सकल पर गाजे, सरभंग चंद सकल पर वापे, सरभंग सूरज सी किरण,

 सूरज सी जोत में, सरभंगी सब का संगी. सब को भेद बतावो, ऊंचा नीचा राजा पकडं, 

भ्रांत कबहु न लाऊं, मैं ओघड का चेला, फिरूं अकेला, न कोई शीश निवाऊं, 

मैं भटियारी कामण गारी, घर घर लाय लगायूं नारी, कामन टुमन करूं सनेवा,

 राखू बरसता मेहवा, शिखर चोढ़यूं वाणी पढ़ता, कबहुं न मांगे पाणी, जोर करे तो जाने न य, 

इंद्री पकड़ निवाऊं, राजा करयूं काल मिंढा, हाकिम करयूं भैंसा, नौ नाथां मैं बोलूं ऊंचा ऊंचा कया त्यागी, 

कया वैरागी, कया भोपा भरडा भांड इतरे की तो मुंड माई मच्छेरी का माथा मुंड,

 मच्छेरण्डी का मुंडा माथा, मत बांध कूड़ कपट का गाथा, जोगी बड़ा जगत के भीतर,

 तां तक ध्यान धरिया, जोगसर कूख से करयूं न्यारा, उल्टा चरखा चलाऊं, 

उल्टा साद समेट् बाणी गोरखा बोल्या उल्टी वाणी, कुए ऊपर चादर टाणी, 

मड़ मसान धूनी घाली आसन डेरा डालूं, जगत् बुलाऊं डेरे, हरी लीरी बावन भैरूं, 

छप्पन कलवा, नौ नारसिंह, सात बायां बीच बायली, वा ही म्हारी दासी, उठ मूठ कामन, 

करतूत, छल, छतर, धक्का , धूम, भूत, पलीत, जीन, ख़यस, कचीया मुराण, जलोटिया, 

फलोटिया, डाकिनी, साकिनी, नजर, टपकार, छत्तीस रोग, बहत्तर बलाय, 

बंध करता लाय, मेरा हकाला कारज सही, नहीं करो ते राजा रामचंद्र की करोड़ करोड़ दुहाई, 

फिरे छठ सोद अन आसमान खोत तीजी तीली इतरे में अटकाऊंनाड़ा, कदेई न निकसे बाला, 

सूखा छोड़ गर में राखे, तीजी घड़ी बदाऊं बाला, धीरी कर उपकार चलाऊं आखर आन चाले 

न पाखर मारूं मेख वजर को टाकर, मंत्र उड़द के गोला बाऊं, पत्थ फाड़ के उड़ाऊं, 

सीधाई का मूसा पकड़, ठोक धड़ माई टिकालीया मुसा छाई, लागे फकड़ की टकर, 

जंगी सा बादशाह होज्या सूख साक लकड़ लाला जाप संपूर्ण सही, सत की गद्दी बैठ के बीजो आपो आप कह


विधि :-

पुरे इकतालीस दिनों तक सुबह, दोपहर तथा शाम को किसी एकात   कुँए  पर नित्य इक्यावन बार दिए गए मंत्र का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाएगा के दिनों में केवल एक ही अन्न खाना चाहिए तथा एक ही समय खान दक्षिण दिशा के अतिरिक्त तीनों कूटों (दिशाओं) में दीपक करना चाहिए बार भोग लगाना चाहिए। मंत्र जप के पश्चात उठते समय मदिरा, मिनाक वाकलों का भोग लगाना अनिवार्य है। जितने कार्य मंत्र में लिखे हैं, वे सब संपन्न होते हैं। अब जिस कार्य में मंत्र की आवश्यकता पड़े, तो मंत्र का इक्कीय बार जप करके फूंक मारें, कार्य सिद्ध हो जाएगा।


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