-->

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

Kal bhairav ka sarwarth sadhak shabar mantra

 सर्वार्थ साधक मन्त्र 


ॐ अस्य श्री बटुक- भैरव-स्तोत्रस्य सप्त-ऋषिः ऋषय, मातृका-छन्दः श्री बटुक- भैरवो देवता ममेप्सितसिद्धयर्थं जपे विनियोगः। ॐकाल-भैरों, बटुक- भैरों भूत- भैरों। महा- भैरव महा- भय विनाशनं देवता सर्व-सिद्धिर्भवेत्। शोक-दुःखक्षय-करं निरंजनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्णं त्वं महेशं। सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत्। काल-भैरव, भूषण-वाहनं काल-हन्तारूपं च, भैरव गुनी ! महात्मनः- योगिनां महादेवस्वरूपं। सर्वं सिद्धयेत्। ॐकाल-भैरों, बटुक-भैरों भूत- भैरों! महा- भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं योगं, त्वं तत्त्वं, त्वं बीजं, महात्मानं त्वं शक्तिः, शक्ति-धारणं त्वं महादेव-स्वरूपं। सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल-भैरो, बटुकभैरो, भूत- भैरो। महा-भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव! त्वं नागेश्वरं, नाग-हारं च त्वं, वन्दे परमेश्वरं। ब्रह्म-ज्ञानं, ब्रह्म-ध्यानं। ब्रह्म-योगं ब्रह्म-तत्वं, ब्रह्म-बीजं महात्मनः। ॐ काल- भैरव, बटुक-भैरव, भूत- भैरव ! महा- भैरव, महा- भूतविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिभवेत्।।

Kal bhairav ka sarwarth sadhak shabar mantra
 Kal bhairav ka sarwarth sadhak shabar mantra


त्रिशूल-चक्र-गदा-पाणिं शूल-पाणि पिनाक-धृक्। ॐ काल-भैरो, बटुकभैरो भूत- भैरो! महा- भैरव। महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव ! त्वं विना गन्धं विना धूपं, विना दीपं, सर्व-शत्रुविनाशनं। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। विभूति- भूति-नाशाय, दुष्ट-क्षय-कारकं महा- भैरवे नमः। सर्व-दुष्ट-विनाशनं सेवकं सर्वसिद्धिं कुरु। ॐकाल- भैरो बटुक-भैरो, भूत-भरो! महाभैरव महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव! त्वं महा-ज्ञानी, महा- ध्यानी महा-योगी, महा-बली, तपेश्वर! देहि मे सिद्धिं सर्वं। त्वं भैरवं भीम- नादं च नादनम्। ॐ कालभैरो, बटुक- भैरो, भूत- भैरो ! महा- भैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिभवेत्।। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं। अमुकं मारय- मारय उच्चाटय-उच्चाटय, मोहयमोहय वशं कुरु-गुरु। सर्वार्थकस्य सिद्धिरूपं त्वं महा-काल! कालभक्षणं महादेव स्वरूपं त्वं। सर्वं सिद्धयेत् ! ॐ काल-भैरो, बटुक- भैरो भूतभैरो! महा-भैरव, महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ कालभैरव ! त्वं गोविन्द, गोकुला नन्द। गोपालं, गोवर्धनं धारणं त्वं। वन्दे परमेश्वरं। नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम-शिव-रूपं च। साधकं सर्वं सिद्धयेत्। ॐ काल- भैरो, बटुक- भैरो, भूतभैरो! महा- भैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। 

ॐ कालभैरव ! त्वं राम-लक्ष्मणं, त्वं श्रीपतिसुन्दरं, त्वं गरुड़वाहनं, त्वं शत्रु-हन्ता च। त्वं यमस्य रूपम्। सर्वकार्यसिद्धिं कुरु। ॐ कालभैरव, बटुकभैरो, भूतभैरव! महा- भैरव, महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ कालभैरव! त्वं ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरं त्वं जगत् कारणं, सृष्टि-स्थितिसंहार-कारकं रक्त-बीजं, महा-सैन्यं, महा-विद्या, महा-भयविनाशनम्। ॐ कालभैरो, बटुकभैरो, भूतभैरो! महा- भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ कालभैरव। त्वं आहार मद्य, मांसं च, सर्व-दुष्टविनाशनं, साधकं सर्वसिद्धिप्रदा।। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर-अघोर महाअघोर सर्व-अघोर भैरव काल! ॐ कालभैरो, बटुक-भैरो, भूत-भैरो ! महा-भैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ॐ आं क्लीं क्लीं क्ली। ॐ आं क्रीं क्रीं क्रीं। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, 5 5 5। क्रू क्रू क्रू। मोहन ! सर्वसिद्धिं कुरु-कुरु। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं। अमुकं उच्चाटय-उच्चाटय। मारय-मारय। धूं, में प्रे, खं खं,दुष्टान् हन हन । अमुकं फट् स्वाहा । ॐ काल भैरो। बटुक-भैरो, भूत भैरो ! महा भैरव महा भय विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।

ॐ बटुक-बटुक योगं च बटुक नाथ महेश्वरः । बटुकं वट वृक्षै बटुकं प्रत्यक्षं सिद्धयेत्। ॐ काल भैरो, बटुक-भैरो भूत- भैरो ! विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । महा भैरव महाभय ॐ काल भैरव, श्मशान भैरव, काल रूप काल भैरव ! मेरो वैरी तेरो आहार रे । काढ़ि करेजा चखन करो कट-कट । ॐ काल भैरो, बटुकभैरो, भूत भैरो । महा भैरव महाभय विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ नमों हंकारीं वीर ज्वालामुखी ! तूं दुष्टन बध करो। बिना अपराध जो मोहिं सतावे, तेकर करेजा छिदि परै मुख वाट लोहू आवे । को जाने चन्द्र, सूर्य जाने की आदि पुरुष जाने, कामरूप कामाक्षा देवी । त्रिवाच्या सत्य फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ॐ काल भैरो, बटुक भैरो भूतभैरो । महा भैरव महा भयविनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।

ॐ काल भैरव ! त्वं डाकिनी शाकिनी, भूत-पिशाचश्च । सर्व- दुष्टनिवारणं कुरु कुरु, साधकानां रक्ष रक्ष । देहि मे हृदये सर्वसिद्धिम्। त्व भैरव - भैरवीभ्यो, त्वं महा भय विनाशनं कुरु । ॐ काल भैरव, बटुकभैरो, भूत- भैरो! महा भैरव महाभय विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ आं ह्रीं । पच्छिम दिशा में सोने का मठ, सोने का किवाड़, सोने का ताला, सोने की कुंजी, सोने का घण्टा, सोने की साँकुली। पहली साँकुली अठारह कुल - नाग के बाँधों। दूसरी साँकुली अठारह कुल - जाति के बाँधों। तीसरी साँकुली वैरि- दुष्टन के बाँधों। चौथी साँकुली डाकिनीशाकिनी के बाँधों। पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत के बाँधों। जरती अगिन बाँधों, जरता मसान बाँधों। जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मर ताई । जहाँ तहाँ जाई । जेहि बाँधि मगावों, तेहि का बाँधि लाओ। वाचा चूकै, उमा सूखै। श्री बावन वीर ले जाये, सात समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल- भैरो, बटुक-भैरो, भूत- भैरो । महा-भैरव, महाभय विनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत् । ।

ॐ आं ह्रीं । उत्तर दिशा में रूपे का मठ । रूपे का किवार, रूपे का ताला, रूपे की कुंजी रूपे का घण्टा, रूपे की साँकुली । पहिलि साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों। दूसरी साँकुली अठारह कुल जाति को बाँधों। तीसरी साँकुली बैरि- दुश्मन को बाँधों। चौथी साँकुली डाकिनी शाकिनी को बाँधों। पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों? जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों। जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मर ताई। जहाँ भेजें, तहाँ जाई। जेहिं बाँधि मँगावों तेहि का बाँधि लाओ, वाचा चूकै, उमा सूखें। श्री बावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर, त्रिवाचा। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा। ॐ काल-भैरो, बटुक-भैरो, भूत-भरो! महा- भैरव। महाभयविनाशनं देवता, सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ आं ह्रीं। पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे का किवार, तामे का ताला, तामे की कुंजी, तामे का घण्टा, तामे की साँकुली। पहली साँकुली अठारह कुल-नाग को बाँधूं, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूं, तीसरी साँकुली वैरि-दुष्टन को बाँधू। चौथी साँकुली डाकिनीशाकिनी को बाँधू, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधूं। जलत अगिन बाँचूं, प्रेत को बाँधूं। जलत अगिन बाँधू जलत मसान बाँचूँ। जल बाँधों थल बाँधों, बाँधों अम्मर ताई। जहाँ भेनँ, तहाँ जाई। जेहिं बाँधि मगावों। वाचा चूके, उमा सूखै श्री बावन वीर ले जाये सात समुन्दर तीर। त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा। ॐ काल- भैरो, बटुक-भैरो, भूत- भैरव। महाभैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ आं ह्रीं। दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ, अस्थि का किवार, अस्थि का ताला, अस्थि की कुंजी, अस्थि का घण्टा, अस्थि की साँकुली। पहली साँकुली अठारह कुल-नाग को बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल जाति को बाँधों, तीसरी साँकुली वैरि-दुष्टन को बाँधों, चौधी साँकुली डाकिनीशाकिनी को बाँधों। पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों। जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मतरताई। जहाँ भेजूं तहाँ जाई। जेहि बाँधि मगावों, तेहि का बाँधि लाओ। वाचा चूकै, उमा सूखै श्री बावन वीर ले जाय सात समन्दर तीर। त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा ॐ काल- भैरो, बटुक- भैरो, भूत- भैरो। महा- भैरव महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल- भैरव! त्वं आकाशं, त्वं पातालं। त्वं मृत्यु-लोकं। चतुर्भुजं, चतुर्मुखं। चतुर्बाहुँ, शत्रु-हन्ता च त्वं भैरव ! भक्ति पूर्ण कलेवरम्। ॐ काल- भैरो, बटुक- भैरो भूत- भैरो ! महा- भैरो महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।।

ॐ काल- भैरव त्वं। वाचा चूकै उमा सूखै, दुश्मन मरे अपने घर में। दुहाई काल-भैरव की। जो मोर वचन झूठा होय, तो ब्रह्मा के कपाल फूटै शिव जी के तीनों नेत्र फटै, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा ॐ काल-भैरव बटुक-भैरव, भूत-भैरव ! महा- भैरव, महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी त्वं योगी, त्वं जंगम स्थावरं त्वं सेवित सर्व-काम-सिद्धिभवेत्। ॐ काल-भैरो, बटुक- भैरो, भूत-भैरो! महा-भैरव महा-भयविनाशनं देवता सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल-भैरव! तुम जहाँ जाहु। जहाँ दुश्मन बैठ होय, तो बैठे को मारो। चलत होय, तो चलते को मारो। सोवत होय, तो सोते को मारो। पूजा करत होय, तो पूजा में मारो। जहाँ होय, तहाँ मारो। व्याघ्र लै भैरव, दुष्ट को भक्षौ। सर्प ले भैरव! दुष्ट को उँसो। खड्ग से मारो, भैरव ! दुष्ट को। शिर गिरैवान से मारो, दुष्टन करेजा फटै। त्रिशूल से मारो, शत्रु छिदि परै मुख वाट लोहू आवे। को जाने? चन्द्र सूरज जाने की आदि-पुरुष जाने। काम-रूप कामाक्षा देवी। त्रिवाचा सत्य फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा। ॐ काल-भैरो, बटुक-भैरो, भूत-भैरो! महा-भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल- भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरं ब्रह्म-रूपं, प्रसन्नो भव। गुनि, महात्मानां महादेवस्वरूपं सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल-भैरव ! त्वं भूतस्य भूत-नाथश्च। भूतात्मा भूतभावनः। त्वं भैरव, सर्व-सिद्धिं कुरु-कुरु। ॐकाल-भैरो बटुक-भैरो, भूत-भैरो। महा- भैरव महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। - 

    इस जंजीरे की सिद्धि के लिए किसी पर्वकाल में या ग्रहणकाल में श्री भैरव जी विषयक सभी नियमों का पालन करते हुए जप व हवन करें तथा इसका नित्य प्रतिदिन एक बार जप करने से साधक की सभी मनोकामनाएं भैरवकृपा से पूरी होती हैं।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

-->