गुरु गोरखनाथ का सर-भङ्गा (जजीरा) मन्त्र
ॐ गुरुजी में सर-भङ्गी सबका सङ्गी, दूध-मास का इक-रङ्गी,
अमर में एक तमर दरसे, तमर में एक झाँई, झाँई में परछाई दरसे,
वहाँ दरसे मेरा साँई । मूल चक सर-भङ्ग आसन, कुण सर-भङ्ग से न्यारा है,
वाहि मेरा श्याम विराजे । ब्रह्म तन्त से न्यारा है, औघड़
का चेला-फिरूं अकेला, कभी न शीश नवाऊँगा,
पत्र-पूर परनन्तर पूरू, ना कोई भ्रान्त ल्यागा,
अजर-बजर का गोला गेलं परवत पहाड़ उठाऊँगा, नाभी डङ्का करो सनेवा,
राखो पूर्ण बरसता मेवा, जोगी जुग से न्यारा है, जुग से कुदरत है न्यारी,
सिद्धां की मछयाँ पकड़ो, गाड़ देओ धरणी माँही, बाबन भैरूं,
चौसठ जोगन, उलटा चक्र चलावे वाणी, पेडू में अटके नाड़ा,
ना कोई मांगे हजरत भाड़ा,मैं भटियारी आग लगा दियू,
चोरी चकारी बीज बारी, सात रॉड दासी म्हारी, वाना-धारी कर उपकारी,
कर उपकार चल्यानूंगा, सीवो दावो ताप तिजारी, तोडूं तोजी ताली,
खट - चक्र का जड़ दूं ताला, कदेई ना निकले गोरख बाला,
डाकिनी शाकिनि, भूतां जा का करस्य जूता, राजा पकडूं,
हाकिम का मुंह कर दूं काला, नौ गज पाछे ठेलूंगा, कुएं पर चादर घालूँ,
आसन घालूं गहरा, मण्ड मसाणा, धुनो धुकाऊँ नगर बुलाऊं डेरा ।
यह सर - भङ्ग का देह, आप ही कर्ता, आपको देह,
सर-भङ्ग का जाप सम्पूर्ण सही, सन्त की गद्दी बैठ के गुरु गोरखनाथ जी कही।
विधि-
किसी एकान्त स्थान में धूनी जलाकर उसमें एक चिमटा गाड़ दें। उस धूनी में एक रोटी पकाकर पहले उसे चिमटे पर रखें। इसके बाद किसी काले कुत्ते को खिला दें। धनी के पास ही पूर्व तरफ मुख करके आसन बिछाकर बैठ जाएँ तथा 21 बार उक्त मन्त्र का जप करें।
उक्त क्रिया 21 दिन तक करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध होने पर 3 काली मिर्चों पर मन्त्र को सात बार पढ़कर किसी ज्वरअस्त रोगी को दिया जाय, तो आरोग्य - लाभ होता है। भूत-प्रेत, डाकिनी, शाकिनी, नजर झपाटा होने पर सात बार मन्त्र से झाड़ने पर लाभ मिलता है। कचहरो में जाना हो, तो मन्त्र का ३ बार जप करके जाय । इससे वहाँ का कार्य सिद्ध होगा।
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