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मंगलवार, 13 सितंबर 2022

Pitru Suktam Path Mantra

 Pitru Suktam Path Mantra

गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ दोष निवारण के लिये पितृ-सूक्तम् का पाठ करना अत्यंत लाभकारी है। साथ ही इसके पाठ से पितृों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गरुड़ पुराण में पितृ पक्ष का विशेष महत्व बताया गया है। श्राद पक्ष हर साल अशिवन माह लगभग 15 दिनों के लिए आते हैं। इन लोगों में श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है। आपको बता दें कि इस साल श्राद्ध पक्ष 10 सितंबर से शुरू हो रहा है जो कि 25 सितंबर तक रहेगा। इस दौरान लोग ब्राह्मणों को भोजन और दान- दक्षिणा देकर पितृों का आशीर्वाद पाते हैं। वहीं पितृदोष निवारण के लिये पितृ-सूक्तम् का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह पाठ शुभ फल प्रदान करने वाला होता है जो हर किसी को लाभ देता है। शास्त्रों के अनुसार पितृ-सूक्तम् का पाठ तेल का दीपक जलाकर संध्या के समय किया जाता है। इसे श्राद्ध पक्ष के अलावा अमावस्या या पूर्णिमा में किया जाता है। इसका पाठ करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। साथ ही पितृों के आशीर्वाद से घर में सुख- शांति का वास रहता है 
 
Pitru Suktam Path Mantra
Pitru Suktam Path Mantra



॥ पितृ-सूक्तम् ॥

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ऋतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥ 

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः। 

तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्गु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥

 त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥ 

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥ 

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥ 

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः। 

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥ 

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥ 

अग्निष्वात्तान् ऋतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे माय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥


अमावस्या या पूर्णिमा अथवा श्राद्ध पक्ष के दिनों में दोपहर या संध्या के समय तेल का दीपक जलाकर पितृ-सूक्तम् का पाठ करने से पितृदोष की शांति होती है और सर्वबाधा दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है.

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