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रविवार, 10 मार्च 2024

अति भयंकर ब्रह्मरक्षस प्रत्यक्षीकरण साधना

अति भयंकर ब्रह्मरक्षस प्रत्यक्षीकरण साधना 

 बहुत दिनों से काफी साधकों ने संपर्क किया देश की विभिन्न जगहों से बहुत लोगों की मांग में ऐसी साधना मांगी गई जो प्रेत योनि में महत्वपूर्ण वा अधिक समर्थ  शक्ति की हो  कोई दो राय नहीं बरहम राक्षस प्रेत योनि में सर्वाधिक सक्षम शक्ति का नाम है इसको सिद्ध करने वाला व्यक्ति कोई भी कार्य करने में सक्षम होता है यह योनि बहुत ही जल्दी प्रसन्न वा क्रोधित भी होती है । हर तंत्र साधक की इच्छा होती है यह साधना सिद्ध करने की । साधक कोशिश भी करते हैं बहुतों ने सिद्ध की बहुत करना चाहते हैं अभी भी और बहुत लोगों ने इसके चक्कर में अपना बहुत कुछ खोया भी है ।।

अति भयंकर ब्रह्मरक्षस प्रत्यक्षीकरण साधना
अति भयंकर ब्रह्मरक्षस प्रत्यक्षीकरण साधना 


विशेष ध्यान 

 यह साधना मजबूत इच्छा शक्ति वाले ही करें और खुद की ही जिम्मेदारी से करें । यह योनि बहुत शक्तिशाली है यह कैसा भी रूप ले सकती है सामने आकर डरा सकती है विभन्न प्रकार के छलावे भी यह कर सकते हैं। अगर आप साफ उद्देश्य वा सही नियमों से कोशिश करते हैं तो हो सकता है बिना डरावने अनुभव के भी यह सिद्ध हो जाए ।
पहले थोड़ा जान लें इनका निवास पुराने पीपल के पेड़ों में होता है मंदिर में या शमशान में ऐसे पीपल का होना चाहिए । आकड़े में भी माना गया है पर अधिकतर पीपल का वृक्ष ही है ।


सामग्री 

मिठाई पांच प्रकार की 
बताशे 
5 पान सुपारी
कपूर 5 लौंग के जोड़े 
कुशा का आसन
शराब की बोतल अच्छी
बकरे का मांस भुना हुआ
वस्त्र काले 
दिशा दक्षिण
दिन शुक्रवार 
माला रुद्राक्ष या स्फटिक 

बहुत अच्छा होगा ऐसा पीपल ढूंढे जो शमशान में हो 
1/नियम में धरती शयन है 
2/स्त्री के संपर्क में नहीं आना है।
3/ एक समय ही भोजन करना है ।
4/ अपवित्र रहना है ।
5/ अकेले ही रहना है साधना के दौरान 
6/ जब तक साधना सिद्ध ना हो जाए किसी से कोई बात नहीं करनी 
7/ सिद्ध होने पर कभी भी किसी से कोई जिक्र नहीं करना


मंत्र 
ओम नमो आदेश गुरु जी को सत नमो आदेश
ओम गुरुजी आदेश करो अपना ब्राह्मण कुल में
पैदा हुआ सिद्ध हुआ ज्ञानी हुआ राक्षस गुणी कार्य
किया वो बना सौ प्रेतो का राजा जो अपने को
कहलाए ब्रह्मराक्षस मै रमाऊ उसकी धूनी पचरंगी
भोग लगाओ आदेश लगाओ अपने गुरु का
ब्रह्मराक्षस तोये बुलाओ प्रत्यक्ष होकर मेरे समक्ष
खड़ा हो इतने पर भी मेरे बुलाए मेरे गुरु उस्ताद
के बुलाए हाजिर होकर मेरा अमुक काम ना करें
तो तू अपनी बहन भांजी से हराम करें तू अपने ही
गुरु का खून पीये मेरे वाचे को कुवाचा करें तो तुझे
देवराज इंद्र की आन लगे तुझे ब्रह्मदेव कि आन
देवों के देव महादेव की आन फुरे मंत्र ईश्वरी वाचा
सत नमो आदेश गुरु का



नोट= 
भूल से भी कोई आजमाएं ना जो करने का मन बनाए हुए साधक हैं वही करें और अपने गुरु से राय मशवरा भी कर लें । पर करते समय कब तुम कर रहे हो इसका पता किसी को भी नहीं होना चाहिए ।




गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

shree Mayuresh sarotam

 श्रीमयूरेश स्तोत्रम्


श्री गणपति भगवान सभी विघ्नों का नाश करने वाले देवता है, यह सभी कार्यो को सिद्ध करने वाले हैं। किसी भी पूजा या अनुष्ठान में गणपति जी को स्थापित करके पूजन या अनुष्ठान किया जाये तो निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है। यूँ तो गणपति महाराज के अनेको स्तोत्रम् हैं परंतु मयूर स्तोत्रम् का महत्व सर्वोपरि है। यह स्तोत्र अपने आप में चैतन्य और मन्त्र सिद्ध है, अतः इसका पाठ ही पूर्ण सफलता प्रदान करने वाला है। मयूर स्तोत्रम् का पाठ घर में आने वाली बाधाओ, सुख शांति, उन्नति, प्रगति तथा प्रत्येक क्षेत्र में इसका नियमित पाठ सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यदि कोई व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक रूप से परेशान है। किसी प्रकार की बीमारी से दुखी है तब इस स्तोत्र का पाठ करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा किसी को जेल हो गई है अथवा जेल जाने की संभावना बन रही है तब भी इस स्तोत्र का पाठ कर के इससे बचा जा सकता है। इस स्तोत्र का पाठ स्त्री एवं पुरुष सामान रूप से कर सकते हैं।
shree Mayuresh sarotam
shree Mayuresh sarotam


सर्व प्रथम स्नान कर आसान को स्पर्श करके मस्तक से लगाएं। पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे अपने सामने गणपति यंत्र या मूर्ती स्थापित करें। पूजा शुक्ल पक्ष के बुधवार को प्रारम्भ करें।

“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||
सर्वप्रथम गुरु जी का पंचोपचार से पूजन करे। उसके बाद गणपति महाराज को प्रणाम करें।
“सर्व स्थूलतनुम् गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम
प्रस्यन्द्न्मधुगंधलुब्धमधुपव्यालोलगंडस्थलम।
दंताघातविदारितारीरुधिरे: सिन्दुरशोभाकर,
वन्दे शैलसुत गणपति सिद्धिप्रदं कामदम ||
सिन्दुराभ त्रिनेत्र प्रथुतरजठर हमेर्दधानस्त्पदमेर्दधानम्
दंत पाशाकुशेष्ट-अन्द्दु रुकर्विलसद्विजपुरा विरामम,
बालेन्दुद्दौतमौली करिपतिवदनं दानपुरार्र्गन्ड-
भौगिन्द्रा बद्धभूप भजत गणपति रक्तवस्त्रान्गरांगम .
सुमुखश्चेक़दंतश्च कपिलो गजकर्णक:
लम्बोदरश्च विक्तो विघ्ननाशो विनायकः
धूम्रकेतु गणध्यक्षो भालचन्द्रो गजानना:
द्वादशेतानी नामानि य पठच्छ्रणुयदपि |
विद्धारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा |
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्यतस्य ना जायते ||”
तत्पश्चात गणपति महाराज के 12 नामो का स्मरण करे।
सुमुखश्च-एकदंतश्च कपिलो गज कर्णक:
लम्बोदरश्व विकटो विघ्ननाशो विनायक:
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:
द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छर्णुयादपि
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जयते।
इसके बाद श्री गणपति जी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करके मयुरेश स्त्रोत का पाठ करे करें।

श्रीमयूरेश स्तोत्रम्

ब्रहोवाच
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा । मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।1।।
ब्रह्मा जी बोले – जो पुराण पुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की कीडाएँ करते हैं. जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाज्य अर्थात अचिन्त्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।1।।
परातत्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् । गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।2।।
जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित, गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।।2।।
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया । सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।3।।
जो स्वेच्छा से ही संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।3।।
नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् । नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ।।4।।
जो अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाशक हैं और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं, उन नाना अस्त्र-शस्त्रधारी मयूरेश को मैं भक्ति भाव से नमस्कार करता हूँ ।।4।।
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् । सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।5।।
इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन-रात जिनका स्तवन करता है तथा जो सत्, असत्, व्यक्त और अव्यक्त रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।5।।
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् । सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।6।।
जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी, सर्वव्यापक और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।6।।
मयूरेश उवाच
पार्वतीनदनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् । भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।7।।
जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान शंकर का भी आनन्द बढ़ाते हैं, उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ।।7।।
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् । समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ।।8।।
मुनि जिनका ध्यान करते हैं, मुनि जिनके गुण गाते हैं तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन आप समिष्ट-व्यष्टि रूप मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।8।।
सर्वाज्ञाननिहान्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् । सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।9।।
जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्भावक, पवित्र, सत्य-ज्ञान स्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।।9।।
अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् । अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।10।।
जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभवसम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णु रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।10।।
मयूरेश उवाच
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम् । सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ।।11।।
मयूरेश बोले – यह स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाला और समस्त पापों का नाशक है, मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तु देने वाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करने वाला है ।।11।।
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् । आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ।।12।।
सात दिन तक इसका पाठ किया जाए तो कारागार में पड़े हुए मनुष्यों को भी यह छुड़ा लाता है. यह शुभ स्तोत्र आधि अर्थात मानसिक चिन्ता तथा व्याधि अर्थात शारीरिक रोग को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है.
।। इति श्रीमयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

bajrang bali astra shabar mantra

बजरंगबली अस्त्र महावीर अस्त्र

आज हम आपको बजरंग बली महावरी का अस्त्र मंत्र के बारे में बताने जा रहे है जो बहुत ही पावर फुल मंत्र है और यह स्वयं सिद्ध मंत्र है इसका जाप करे और लाभ पाये 

bajrang bali astra shabar mantra




 सतनमो आदेश । श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी ओउम सोहंम धेरें आकाश । आकाश में पवन।पवन में तेज तेज में तोय। तोय में तवा । तवा में बाला परमहंस रखवाला | बाला परमहंस में अलख निरंजन । अलख निरंजन की ये काया । तो शिव शक्ति दोनों ने नाद बिन्द से रचाया । ब्रम्हा विष्णु महेश मिल के उसमें प्राण डालिया । चाम पड़े तो सती सीता माई लाजै । हाड़ गलें तो अंजनी माता लाजै। माँस सड़े तो पवन लाजै । प्राण ले जाये तो सतगुरु लाजै । पड़े नहीं पिण्ड, छूटें नहीं काया । राजा रामचन्द्र जी ने महावीरास्त्र चलाया। हाँक मार अंजनी पुत्र हनुमान जी आया। सात समुन्द्र, सात समुन्द्र बीच ऋषिम्युक पर्वत । ऋषिम्युक पर्वत पर स्फटिक शिला । जिस पर अंजनी पुत्र हनुमान जी बैठा।कार्नो कुण्डल काँधे मूंज जनेऊँ सिर जटा । पांव खड़ाऊँ क़मर वज्जर लँगोट हाथ में लोहे की गदा । 

ग्रह कील | भूत कील। प्रेत कील। वैताल कील। कंकाल कील। आकाश कील। सर्वदिशा कील। खेचरा कील | भुचरा कील । जलचरा कील | थलचरा कील। नभचरा कील | डेरू बजती ढांक कील । आकाश की कड़कती बिजली कील। आती मुठ कील | जलती चिता कील मुर्दा कील। मरघट कील । मढ़ी कील । मसाण कील | भूमि का भोमिया की । गढ़े धन का रखवाला कील । बादिगर का बाद कील । दुश्मन का कण्ठ कील । पूर्व कील | पश्चिम कील | उत्तर कील | दक्षिण कील | पवन पुत्र बीरबंक नाथ बजरंगबली रामदूत हनुमान जाग । तीनलोक चौदह भुवन सप्त पाताल में किलकारी मार। तूं हुंकारे । तैतीस कोटि देवी देवता काज सँवारे । ओढ़ सिन्दूर सती सीता माई का । तूं प्रहरी अयोध्यापुरी का | महावीर हनुमान बलवन्ता । राजा रामचन्द्र जी के दूत हल हलन्ता।आओ चढ़ चढन्ता । आओ गढ़ किला तोड़न्ता । आओ लंका जालन्ता बालन्ता भस्म करन्ता।आओ ले लांगुर लँगूर ते लिपिटाये सुमिरिते पटका ओ चन्दी चन्द्रावली भवानी मिल गावें मंगलाचार जीते राजा रामचन्द्र कुंवर जति लक्ष्मण । हनुमान जी तुम

आओ।आओ जी रामदूत तुम आओ। मस्तक सिन्दूर चढ़ाते आओ। दांत किट किटाते आओ। सोलह सौ योजन समुन्द्र को लाँघते आओ। मैनाक पर्वत पर विश्राम करते आओ। सिंहिका राक्षसी की खोपड़ी फोड़ते आओ। सुरसा माता के मुँह में घुस कर वापिस आओ।लंकिनी देवी के मुँह पर मुष्टिका मारते आओ। अशोक वाटिका को उजाड़ते आओ। अक्षय कुमार को उठाकर पटकते आओ। रानी मंदोदरी का सिंहासन हिलाते डुलाते आओ। द्रोणाचल पर्वत को उखाड़ते आओ। लंकापति रावण को मूर्छित करतें आओ आओ आओ पवन कुमार हनुमान। बांये चलें सुग्रीव वीर। आगे काल भैरव किलकिलाये। पीछे जामवन्त वीर दांये चलें अंगद वीर। ऊपर अंजनी पुत्र हनुमान जी गाजै । देव दानव राक्षस को फाड़े। डाकिनी शाकिनी को मार संहारें । श्री नाथजी गुरुजी हमारें सतगुरु | हम सतगुरू के बालक हनुमान जी को साथ ले हम रणभूमि में चलें साथ में लिया और कोई । रणभूमि में पीठ पग कभी न मोड़िये संकट मोचन हनुमान जी करें सो होय। पग पग में पदमावती देवी बसें मुल बसे गौरी नन्द गणेश | भृकुटी बीच काल भैरव बसे हृदय बसें महेश । हथेली में हनुमान जी बसें बाजै अनहद तूर । यमडंक लागे नहीं काल कण्टक रहें अतिदूर । इतना महावीर हनुमान मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया । कैलाश गिरी की शिला पर सिद्धांसन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथजी ने राजा गोपीचन्द राजा भृतहरि को कान में सुनाया। श्री नाथजी गुरुजी को आदेश । आदेश । आदेश


विधि

यह अस्त्र स्वयं सिद्ध मंत्र है इसको आप 11 या 21 जाप कर हनुमान मंदिर में पान व प्रसाद आदि की पूजा करें

जब इसको काम लेना हो तो 21 बार जाम कर पानी में फूंक मार कर रोगी को पिला दें। 


शुक्रवार, 3 मार्च 2023

lon chamrin shabar mantra shadhana

लोना चमारी शाबर मंत्र साधना 

 शाबर मंत्र द्वारा लोना चमारी को सिद्ध करने से साधक भूत-प्रेत, जादूटोना, डाकिनी-शाकिनी, जिन्न बाधा, तांत्रिक माया जाल, काला जादू व रक्षा करने हेतु, इन सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।

लोना चमारी शाबर मंत्र साधना 



लोना चमारी शाबर मंत्र 


ॐ नमो आदेश गुरु को


लूना चमारीन जगत की बिजुरी मोती हेल चमके


जो "अमुक" पिंड में जान करे विजान करे तो उस रंडी पे फिरे दुहाई तख़्त सुलेमान पैगंबर की फिरे


मेरी भक्ति


गुरु की शक्ति


फुरो मंत्र इश्वरोवाचा ||


मंत्र साधना विधि :


संध्या के समय पूर्व दिशा की तरफ मुख करके आसन बिछाकर बैठ जाये। सामने एक तेल का दीपक जलाये | साधना के पहले दिन दो लडूड, एक मीठा पान, दो लौंग, दो इलाइची छोटी और सात प्रकार की मिठाई अपने सामने रखे और अगले दिन किसी उजाड़ स्थान पर जाकर फेंक आयें। अब सबसे पहले गुरु पूजन करें फिर गणेश जी का पूजन करें। ऐसा करने के उपरांत रक्षा मंत्र द्वारा अपने चारों तरफ सुरक्षा चक्र बना ले। अब उपरोक्त शाबर मंत्र के अपने सामर्थ्य अनुसार जप करें। प्रतिदिन समान मात्रा में जप करें, किसी दिन कम या किसी दिन अधिक ऐसा बिल्कुल न करें। साधना को 21 दिन तक लगातार करें। 21वें दिन फिर से साधना में दो लडूड, एक मीठा पान, दो लौंग, दो इलाइची छोटी और सात प्रकार की मिठाई अपने सामने रखे और इससे अगले दिन किसी उजाड़ स्थान में फेंक आयें -


बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

Kal bhairav ka sarwarth sadhak shabar mantra

 सर्वार्थ साधक मन्त्र 


ॐ अस्य श्री बटुक- भैरव-स्तोत्रस्य सप्त-ऋषिः ऋषय, मातृका-छन्दः श्री बटुक- भैरवो देवता ममेप्सितसिद्धयर्थं जपे विनियोगः। ॐकाल-भैरों, बटुक- भैरों भूत- भैरों। महा- भैरव महा- भय विनाशनं देवता सर्व-सिद्धिर्भवेत्। शोक-दुःखक्षय-करं निरंजनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्णं त्वं महेशं। सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत्। काल-भैरव, भूषण-वाहनं काल-हन्तारूपं च, भैरव गुनी ! महात्मनः- योगिनां महादेवस्वरूपं। सर्वं सिद्धयेत्। ॐकाल-भैरों, बटुक-भैरों भूत- भैरों! महा- भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं योगं, त्वं तत्त्वं, त्वं बीजं, महात्मानं त्वं शक्तिः, शक्ति-धारणं त्वं महादेव-स्वरूपं। सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल-भैरो, बटुकभैरो, भूत- भैरो। महा-भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव! त्वं नागेश्वरं, नाग-हारं च त्वं, वन्दे परमेश्वरं। ब्रह्म-ज्ञानं, ब्रह्म-ध्यानं। ब्रह्म-योगं ब्रह्म-तत्वं, ब्रह्म-बीजं महात्मनः। ॐ काल- भैरव, बटुक-भैरव, भूत- भैरव ! महा- भैरव, महा- भूतविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिभवेत्।।

Kal bhairav ka sarwarth sadhak shabar mantra
 Kal bhairav ka sarwarth sadhak shabar mantra


त्रिशूल-चक्र-गदा-पाणिं शूल-पाणि पिनाक-धृक्। ॐ काल-भैरो, बटुकभैरो भूत- भैरो! महा- भैरव। महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव ! त्वं विना गन्धं विना धूपं, विना दीपं, सर्व-शत्रुविनाशनं। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। विभूति- भूति-नाशाय, दुष्ट-क्षय-कारकं महा- भैरवे नमः। सर्व-दुष्ट-विनाशनं सेवकं सर्वसिद्धिं कुरु। ॐकाल- भैरो बटुक-भैरो, भूत-भरो! महाभैरव महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव! त्वं महा-ज्ञानी, महा- ध्यानी महा-योगी, महा-बली, तपेश्वर! देहि मे सिद्धिं सर्वं। त्वं भैरवं भीम- नादं च नादनम्। ॐ कालभैरो, बटुक- भैरो, भूत- भैरो ! महा- भैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिभवेत्।। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं। अमुकं मारय- मारय उच्चाटय-उच्चाटय, मोहयमोहय वशं कुरु-गुरु। सर्वार्थकस्य सिद्धिरूपं त्वं महा-काल! कालभक्षणं महादेव स्वरूपं त्वं। सर्वं सिद्धयेत् ! ॐ काल-भैरो, बटुक- भैरो भूतभैरो! महा-भैरव, महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ कालभैरव ! त्वं गोविन्द, गोकुला नन्द। गोपालं, गोवर्धनं धारणं त्वं। वन्दे परमेश्वरं। नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम-शिव-रूपं च। साधकं सर्वं सिद्धयेत्। ॐ काल- भैरो, बटुक- भैरो, भूतभैरो! महा- भैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। 

ॐ कालभैरव ! त्वं राम-लक्ष्मणं, त्वं श्रीपतिसुन्दरं, त्वं गरुड़वाहनं, त्वं शत्रु-हन्ता च। त्वं यमस्य रूपम्। सर्वकार्यसिद्धिं कुरु। ॐ कालभैरव, बटुकभैरो, भूतभैरव! महा- भैरव, महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ कालभैरव! त्वं ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरं त्वं जगत् कारणं, सृष्टि-स्थितिसंहार-कारकं रक्त-बीजं, महा-सैन्यं, महा-विद्या, महा-भयविनाशनम्। ॐ कालभैरो, बटुकभैरो, भूतभैरो! महा- भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ कालभैरव। त्वं आहार मद्य, मांसं च, सर्व-दुष्टविनाशनं, साधकं सर्वसिद्धिप्रदा।। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर-अघोर महाअघोर सर्व-अघोर भैरव काल! ॐ कालभैरो, बटुक-भैरो, भूत-भैरो ! महा-भैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ॐ आं क्लीं क्लीं क्ली। ॐ आं क्रीं क्रीं क्रीं। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, 5 5 5। क्रू क्रू क्रू। मोहन ! सर्वसिद्धिं कुरु-कुरु। ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं। अमुकं उच्चाटय-उच्चाटय। मारय-मारय। धूं, में प्रे, खं खं,दुष्टान् हन हन । अमुकं फट् स्वाहा । ॐ काल भैरो। बटुक-भैरो, भूत भैरो ! महा भैरव महा भय विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।

ॐ बटुक-बटुक योगं च बटुक नाथ महेश्वरः । बटुकं वट वृक्षै बटुकं प्रत्यक्षं सिद्धयेत्। ॐ काल भैरो, बटुक-भैरो भूत- भैरो ! विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । महा भैरव महाभय ॐ काल भैरव, श्मशान भैरव, काल रूप काल भैरव ! मेरो वैरी तेरो आहार रे । काढ़ि करेजा चखन करो कट-कट । ॐ काल भैरो, बटुकभैरो, भूत भैरो । महा भैरव महाभय विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ नमों हंकारीं वीर ज्वालामुखी ! तूं दुष्टन बध करो। बिना अपराध जो मोहिं सतावे, तेकर करेजा छिदि परै मुख वाट लोहू आवे । को जाने चन्द्र, सूर्य जाने की आदि पुरुष जाने, कामरूप कामाक्षा देवी । त्रिवाच्या सत्य फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ॐ काल भैरो, बटुक भैरो भूतभैरो । महा भैरव महा भयविनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।

ॐ काल भैरव ! त्वं डाकिनी शाकिनी, भूत-पिशाचश्च । सर्व- दुष्टनिवारणं कुरु कुरु, साधकानां रक्ष रक्ष । देहि मे हृदये सर्वसिद्धिम्। त्व भैरव - भैरवीभ्यो, त्वं महा भय विनाशनं कुरु । ॐ काल भैरव, बटुकभैरो, भूत- भैरो! महा भैरव महाभय विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ आं ह्रीं । पच्छिम दिशा में सोने का मठ, सोने का किवाड़, सोने का ताला, सोने की कुंजी, सोने का घण्टा, सोने की साँकुली। पहली साँकुली अठारह कुल - नाग के बाँधों। दूसरी साँकुली अठारह कुल - जाति के बाँधों। तीसरी साँकुली वैरि- दुष्टन के बाँधों। चौथी साँकुली डाकिनीशाकिनी के बाँधों। पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत के बाँधों। जरती अगिन बाँधों, जरता मसान बाँधों। जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मर ताई । जहाँ तहाँ जाई । जेहि बाँधि मगावों, तेहि का बाँधि लाओ। वाचा चूकै, उमा सूखै। श्री बावन वीर ले जाये, सात समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल- भैरो, बटुक-भैरो, भूत- भैरो । महा-भैरव, महाभय विनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत् । ।

ॐ आं ह्रीं । उत्तर दिशा में रूपे का मठ । रूपे का किवार, रूपे का ताला, रूपे की कुंजी रूपे का घण्टा, रूपे की साँकुली । पहिलि साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों। दूसरी साँकुली अठारह कुल जाति को बाँधों। तीसरी साँकुली बैरि- दुश्मन को बाँधों। चौथी साँकुली डाकिनी शाकिनी को बाँधों। पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों? जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों। जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मर ताई। जहाँ भेजें, तहाँ जाई। जेहिं बाँधि मँगावों तेहि का बाँधि लाओ, वाचा चूकै, उमा सूखें। श्री बावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर, त्रिवाचा। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा। ॐ काल-भैरो, बटुक-भैरो, भूत-भरो! महा- भैरव। महाभयविनाशनं देवता, सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ आं ह्रीं। पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे का किवार, तामे का ताला, तामे की कुंजी, तामे का घण्टा, तामे की साँकुली। पहली साँकुली अठारह कुल-नाग को बाँधूं, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूं, तीसरी साँकुली वैरि-दुष्टन को बाँधू। चौथी साँकुली डाकिनीशाकिनी को बाँधू, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधूं। जलत अगिन बाँचूं, प्रेत को बाँधूं। जलत अगिन बाँधू जलत मसान बाँचूँ। जल बाँधों थल बाँधों, बाँधों अम्मर ताई। जहाँ भेनँ, तहाँ जाई। जेहिं बाँधि मगावों। वाचा चूके, उमा सूखै श्री बावन वीर ले जाये सात समुन्दर तीर। त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा। ॐ काल- भैरो, बटुक-भैरो, भूत- भैरव। महाभैरव महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ आं ह्रीं। दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ, अस्थि का किवार, अस्थि का ताला, अस्थि की कुंजी, अस्थि का घण्टा, अस्थि की साँकुली। पहली साँकुली अठारह कुल-नाग को बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल जाति को बाँधों, तीसरी साँकुली वैरि-दुष्टन को बाँधों, चौधी साँकुली डाकिनीशाकिनी को बाँधों। पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों। जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मतरताई। जहाँ भेजूं तहाँ जाई। जेहि बाँधि मगावों, तेहि का बाँधि लाओ। वाचा चूकै, उमा सूखै श्री बावन वीर ले जाय सात समन्दर तीर। त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा ॐ काल- भैरो, बटुक- भैरो, भूत- भैरो। महा- भैरव महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल- भैरव! त्वं आकाशं, त्वं पातालं। त्वं मृत्यु-लोकं। चतुर्भुजं, चतुर्मुखं। चतुर्बाहुँ, शत्रु-हन्ता च त्वं भैरव ! भक्ति पूर्ण कलेवरम्। ॐ काल- भैरो, बटुक- भैरो भूत- भैरो ! महा- भैरो महा- भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।।

ॐ काल- भैरव त्वं। वाचा चूकै उमा सूखै, दुश्मन मरे अपने घर में। दुहाई काल-भैरव की। जो मोर वचन झूठा होय, तो ब्रह्मा के कपाल फूटै शिव जी के तीनों नेत्र फटै, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा ॐ काल-भैरव बटुक-भैरव, भूत-भैरव ! महा- भैरव, महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। ॐ काल-भैरव! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी त्वं योगी, त्वं जंगम स्थावरं त्वं सेवित सर्व-काम-सिद्धिभवेत्। ॐ काल-भैरो, बटुक- भैरो, भूत-भैरो! महा-भैरव महा-भयविनाशनं देवता सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल-भैरव! तुम जहाँ जाहु। जहाँ दुश्मन बैठ होय, तो बैठे को मारो। चलत होय, तो चलते को मारो। सोवत होय, तो सोते को मारो। पूजा करत होय, तो पूजा में मारो। जहाँ होय, तहाँ मारो। व्याघ्र लै भैरव, दुष्ट को भक्षौ। सर्प ले भैरव! दुष्ट को उँसो। खड्ग से मारो, भैरव ! दुष्ट को। शिर गिरैवान से मारो, दुष्टन करेजा फटै। त्रिशूल से मारो, शत्रु छिदि परै मुख वाट लोहू आवे। को जाने? चन्द्र सूरज जाने की आदि-पुरुष जाने। काम-रूप कामाक्षा देवी। त्रिवाचा सत्य फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा। ॐ काल-भैरो, बटुक-भैरो, भूत-भैरो! महा-भैरव महा-भयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल- भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरं ब्रह्म-रूपं, प्रसन्नो भव। गुनि, महात्मानां महादेवस्वरूपं सर्वसिद्धिर्भवेत्। ॐ काल-भैरव ! त्वं भूतस्य भूत-नाथश्च। भूतात्मा भूतभावनः। त्वं भैरव, सर्व-सिद्धिं कुरु-कुरु। ॐकाल-भैरो बटुक-भैरो, भूत-भैरो। महा- भैरव महाभयविनाशनं देवता। सर्वसिद्धिर्भवेत्।। - 

    इस जंजीरे की सिद्धि के लिए किसी पर्वकाल में या ग्रहणकाल में श्री भैरव जी विषयक सभी नियमों का पालन करते हुए जप व हवन करें तथा इसका नित्य प्रतिदिन एक बार जप करने से साधक की सभी मनोकामनाएं भैरवकृपा से पूरी होती हैं।



शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

ghar raksha shabar mantra

 गृहरक्षा मन्त्र

 आज हम आपको एक अचूक शाबर मंत्र जो अपने घर को सुरक्षा चक्र के रूप में कार्य करेगा जो अपने घर में अनके अलाओं बलाओं व काला जादू किया कराया आदि से पूर्णरूप से सुरक्षा करेगा ओर इन सभी को दूर कर देगा जिससे आपका घर के चारो ओर सुरक्षा चक्र हो जायेगा। यह मंत्र बहुत ही शाक्तिशाली है जिससे अपने घर की सुरक्षा की जा सकती है।

 

ghar raksha shabar mantra
ghar raksha shabar mantra


ॐ काली-काली जप। निशा-रात-काली।।

 काली की माता। अढ़ाई आखर के भोर।। 

मैं हारौ, परची के घावो। अण्डा खसै, सवा भरि विय्या सोट, 

सम्हारि-सम्हारि क घाव।। उनठ बान्ह, बनठ बान्ह। देवता-देवी लकेसरी।। 

कासा के पेरी। तम्बोक बेड़ी बेड़ी-पर-बेड़ी। 

बारह बरस, ३६ युग के।। भाषा देत छियो। गुरु खोलो, 

तब न खुले राज।। हम ही खोली, तब ही खुले। दोहाई ईश्वर महादेव। 

गौरा-पर्वती के सत् वचन के प्रमाण के।।


मंत्र प्रयोग की विधि

इस मन्त्र का ग्रहणकाल में अनगिनत जप विधि-विधान से करें तो यह मंत्र सिद्ध होगा; फिर जरूरत के समय इस मन्त्र को जपते हुए घर के चारो ओर सात बार रेखा खींचने से घर अलाओं-बलाओं से सुरक्षित रहेगा।

 

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