बिच्छू झाड़ने का मन्त्र
1-मंत्र
ॐ नमो सत्य नाम, आदेश गुरु को। वृश्चिक-दंश पीड़ा हरो, जहर उतारो। न उतारो, तो गुरु गोरखनाथ की आन। दुहाई काली कङ्कालनी की। दंशपीडा बन्य-बन्य। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। शब्द सांचा, पिण्ड काचा। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।
पहले उक्त मन्त्र को सिद्ध करे। बाद में जब देशयुक्त व्यक्ति अये, तब 21 बार उक्त मन्त्र जप कर झाड़े। दंश समाप्त होगी और जहर भी उतर आये।
2-मंत्र
ॐ सुमेर पर्वत, नोना चमारी। सोने राई, सोन के सुनारी। हुक बुक, बान बिआरी। धारिणी नला, कारी-कारी। समुद्र पार बहायो, दोहाई नोना चमारी की। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।।
3-मंत्र
ॐ नमो गुरह गाय, परवत पर जाय। हरी दूब खाती फिरे, ताल-तलैया पानी पिए। गुरह गाय ने गोबर किया, जिसमें उपजे बिच्छू सात। काले, पीले, भूरे (घोले), लाल, रङ्ग-बिरङ्गे और हराल। उत्तर रे उतर जहर बिच्छू का जाया, नहिं (तो) गरुड जी उड़ के आया (नहिं गरुड़ उड़कर आया)। सत्य नाम, आदेश गुरु को। शब्द सांचा, पिण्ड काचा। स्फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।
पहले मन्त्र सिद्ध करे। फिर उक्त मन्त्र से जल अभिमन्त्रित कर दंशयुक्त व्यक्ति को पिलाये। विष का प्रभाव नष्ट होगा।
दीपावली की रात में उक्त मन्त्र का 10 माला जप करे। इस प्रकार 1000 जप करने से मन्त्रसिद्धि होगी। बाद में दंशयुक्त व्यक्ति के 7 बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित जल पिलाये तो विष या जहर उतर जायेगा।
4-मंत्र
सुरहि कारी गाय, गाय की चमरी पूछी। तेकरे गोबर, बिछा बिअतोइ बिंछी। तोर के जाती, गौरा वर्ण अठारह जाती। छः कारी, छः पीअरी, छः भूमा-घारी, छः रत्न-पवारी, क्षः क्षः। कुटुं कुंदै छारि उतारी बिच्छी। हाडाहाड, पोर-पोर, कस मार। लील कण्ठ गर मोर, महादेव की दोहाई। गौरापार्वती की दुहाई। अनी-तबे हरि शण्डार, मन छाई उतरहि बीछी। हनुमन्त आज्ञा, दुहाई हनुमन्त की।
5-मंत्र
पर्वत ऊपर सुरहि गाई, तेकरे गोबरे बिछी बिआई। छः कारी, छः गोरी। छः का जोता उतारि कै, बिछा बिछिठा। वहि आ आठ-गाठि, नव पारे बीछी करे अजोइ बलि चल चलाई कर वाइ। ईश्वर महादेव की दुहाई। जहाँ गुरु के पाँव सरके, तहँहि गुरु के कुश कजुरी। तहहि विष्णु पुरी निर्मा जाइके। दहाई महादेव गुरु के। ठावहिं ठाव, बीछी पार्वती।
6-मंत्र
बीछी-बीछी तोर के जाति? छः कारी, छः पीयरी, छः परवारी। बीछी पपाना पस स्वपाउ, तोरि विषि तइमे ना हिठाउ। ऊपर जा तिगछै पाऊ, शिव वचन शिव नारी। हनुमान के आन, महादेव कै आन, गोरा-पार्वती के आन। नोना चमारिन के उतरि आउ, उतरि आउ।
7-मंत्र
ॐ नमो समुद्र ! समुद्र में कमल, कमल में विषहर बिछू उपजावे। कहूँ तेरी जाति-गरुड कहे मेरी अठारह जाति। छः कारी छः काबरी, छः । कूँ वान। उतरे रे उतर, नहीं तो गरुड पङ्घ हङ्कारु आन। सर्वत्र विष न मिलई, उतरे रे बिछू ! उतर। गुरु की शक्ति, मेरी भक्ति, फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।
सबसे पहले शाबर-विधि से मन्त्र को सिद्ध करे। बाद में मन्त्र को पढ़ते हुए बिच्छु द्वारा मारे गये डङ्क के स्थान के ऊपर के भाग पर अपना हाथ फिराये।
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