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शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

कालि का आप्तकाम मन्त्र

 कालि का आप्तकाम मन्त्र

 ॐ काली-काली। महाकाली।। इन्द्र की बेटी। ब्रह्मा की साली।। कूचे पान बजावे ताली। चल काली।। कलकत्ते वाली। आल बाँधू-ताल बाँधू।। और बाँधू तलैया। शिव जी का मंदिर बाँधू।। हनुमान जी की दुहैया। शब्द साँचा।। पिण्ड काँचा। फुरे मन्त्र।। ईश्वरो वाचा।।

विधि:-

इस मन्त्र का अनुष्ठान ४१ दिन का है। साधक नदी किनारे एकांत स्थान में घी का दीपक जलाकर सुगंधित धूप सुलगाकर मौसमी फल व मिठाई भेंट रखकर हर रोज दो माला जप करें तो यह मन्त्र सिद्ध होगा। जप करते समय जब कालिका प्रत्यक्ष दर्शन दें तब उस समय एक पान उल्टा और एक पान सीधा (चिकना भाग ऊपर) रखकर उस पर कपूर जला दें तथा साधक अपने दाँयें हाथ की अनामिका अंगुली की कुछ बूंद धरती पर टपका दें। फिर माँ कालिका से तीन वचन ले लें कि बुलाने पर हाजिर होना पड़ेगा, जो काम कहा जाय करना होगा तथा मुझे वरदान दो, मैं सदा दुनिया की भलाई करूँ व सदा आपके नाम का गुणगान करूँ।

कालि का आप्तकाम मन्त्र
 कालि का आप्तकाम मन्त्र


काली दर्शन प्रयोग मन्त्र 

ॐ नमो आदेश गुरु को डण्ड- भुज-डण्ड प्रचण्ड नो खण्ड प्रगट देवी तुहि झुण्डन के झुण्ड खगर दिखा खप्पर लियां खड़ी कालका तागदड़े मस्तंग तिलक मागर दे मस्तंग चोला जरी का फागड़ दीफू गले फुल माल, जयजय-जयन्त, जय आदि-शक्ति जय कालका खपर-धनी जय मचकुट छन्दनी देव जय-जय महिरा, जय मरदिनी, जय-जय चण्ड-मुण्ड, भण्डासुर खण्डनी। जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी। जय शिव राजेश्वरी। अमृत यज्ञ धागी-धृट। दृवड़-दुवड़नी, बड़ रवि-डर-डरनी, ॐ - ॐ-ॐ।।

विधि:-

इस मन्त्र का नित्य जो साधक १ माला जप धूप, दीप, नैवेद्य विधि आदि से करता है, उसको माँ जगदम्बा कालिका के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। इस मन्त्र का जप एकाग्रचित हो गुरु जी की आज्ञा से करने पर शीघ्र सिद्धि मिलती है।

ओर जाने इनके बारे मे:-

असावरी शाबर मन्त्र 

कालि का आप्तकाम मन्त्र

 महा-काली बाँध मन्त्र 

प्रेत-जागृति व श्मशान-जागृति

कीलक मन्त

भूत-प्रेत-बाधा-नाशक मन्त्र 

काली रहस्य सिद्धि मन्त्र 

ॐ कालिका खड्ग खप्पड़ लिये ठाडी।। जोत तेरी है निराली। पीती भर-भर रक्त पियाली। करे भक्तों की रखवाली। न करे रक्षा तो महाबली भैरव की दुहाई।।

विधि:-

इस मन्त्र का नित्य जप करने से साधक की सभी समस्याओं का हल हो जाता है, इस मन्त्र को सिद्ध कर उच्चारण करते हुए अपनी छाती पर फूंक मारने से सभी ओर से रक्षा होती है। इस मन्त्र में अनेकों रहस्य सिमटे हुए हैं, जिनका अनुभव इस मन्त्र का नित्य जप कर प्राप्त करना चाहिये।

भद्रकाली विधान 

ॐ सिंहादुत्थाय कोपाल् धधड्-धड्-धडा धावमाना भवानी शत्रुणां शस्त्रपाते ततड़-तड़-तडा त्रोटयन्ती शिरासि तेषां रक्तं पिबन्ती घुघुट-घुट-घटा घोटयन्ती पिशाचान् तृत्तास्तृप्ता हसन्ती खलल-खल-खला शाम्भवी व: पनात उग्रचण्डा प्रचण्डा च चण्डोगा चण्डनायका चण्डा चण्डवती चैत चण्ड-रूपातिचण्डिका।।

विधि:-

इस मन्त्र का जप श्मशान या एकांत स्थान में रात्रि १२ बजे के बाद ४१ दिन में सवा लाख करें; धूप-दीप नैवेद्य, मांस, मदिरा, बलि आदि का प्रबंध करके जप करें। जप के समय साधक अपनी रक्षा हेतु रक्षा मंत्र' से घेरा बनाकर ही जप करें, जप का दशांश हवन, तर्पण करें तो भद्रकाली की साधक पर पूर्ण रूप से कृपा होती है। इस मन्त्र का जप गुरु के निर्देशानुसार ही करें।

काली ऋद्धि मन्त्र 

ॐ काली काली-महाकाली मदे मांसे करे देवाली इन्द्र की बेटी ब्रह्मा की साली घोड़े की पीठ बजावे ताली चाम की कोथली हाड़ की जपमाली पताल की सर्पिणी उडु-मंडल की बिजुली जहाँ पठाऊँ तहाँ जाईह रिद्धिसिद्धि ल्याहूँ दश कोश बाँएँ दश कोश दाहिने दश कोश आगे दश कोश पाछे मेरा वैरी तेरा भक्ष्य में दिया तरुसिले-चूसि ले क्रीं काली महाकाली फुरो मन्त्र अन्नूठ चण्डाली न फुरे, तो ब्रह्मा-विष्णु-महेश वाचा पावु पखा ले मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।

विधि:-

इस मन्त्र की साधना करने से साधक को ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है तथा शत्रुनाश के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

कालिका रक्षा मन्त्र 

ॐ काली-काली महाकाली, ज्यावे सीपी, वलके डाहोली दोनों हात से बजावे टाली, बाँएँ याट जा बसे, काल-भैरव उसका काट-काट कौन रखा कनकाला तोहू, म्हसासूर येऊ का उज्याला कर आला मछिन्द्र का सोटा, काल-भैरव का पाँव तुटा, दूरा लाजी लूखा, किया हाला सती सके का बाँधु, काल राखे गोरखनाथ सिंहनाथ फूरे अडबंगी बोले फूरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।

विधि:-

इस मन्त्र का ग्रहणकाल में  जप कर सिद्ध करें। फिर आवश्यकता के समय २१ बार जप कर ताली बजाने से या रक्षा घेरा बनाने से सुरक्षा प्राप्त होती है।



शनिवार, 9 जनवरी 2021

shamshan jagran mantra

प्रेत-जागृति व श्मशान-जागृति 

उक्त जागृति का विधान सुरक्षित रहे, केवल इसी उद्देश्य से प्रकाशित किया जा रहा है। पाठकों से अनुरोध है कि कृपया ज्ञान-वर्द्धन हेतु ही इसे पढ़ें। इसे करने के पीछे नहीं पड़ेंगे। यदि कोई करना ही चाहें, तो कम-से-कम किसी जानकार अधिकारी व्यक्ति के संरक्षण में ही करेंगे। अन्यथा गम्भीर सङ्कट में पड़ सकते हैं, जिसके लिए पॊसट प्रकाशक कोई भी जिम्मेदार नहीं होगा।

shamshan jagran mantra
shamshan jagran mantra


मन्त्र 1: 

"दैत खड़ा, भूत खड़ा, मनी मशान खड़ा । चौथे कीले पे निशान कौन लगाया? तालन की माला, बल की विद्या फेर दो । गुरु की शपथ, मेरी भगत । चलो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।" 

 मन्त्र 2 : 

"भुली मशान ठिकाळा । दैत ताल जगमऊ, मशान जगाऊ । गुरु की शपथ, मेरी भगत । चलो मन्त्र, ईश्वरी वाचा ।" 

(उक्त दोनों मन्त्र प्रेत-जागृति व श्मशान-जागृति के हैं।)

मन्त्र 3 : 

श्मशान-धक्का-निवारण मन्त्र-'काळ-भैरव ! कपिला जड़ भैरव ! चौखड श्मशान में भोजन कर। राजा राज करी। काळ-भैरव ! बता तेरा रूप । तेरे कू बताऊंगा गुगुल की धूप । जातजोड़ी। जहाँ भेजे, वहाँ जाना । बन्द मा की बाहत्तर कोठड़ी में घुस जाना। जजीरवाले की जजीर खोलना। भूत-पलित का चौखा उखाड़ना । चुड़ेल दासीन माते की चौकी उखाड़ना। बड़े - बड़े देवी देवताओं की चौकी उखाड़ना । ताल - भिवेरी पैकी घर फेक देना । न फेक दे, तो सख्खे माँ के खाट पर जाएगा। गुरू की शपथ, मेरी भगत । चलो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।

मन्त्र 4 : 

प्रेत गिराने का मन्त्र-"चण्डी, चण्डी, महाचण्डी । मी करीन मेल्यावर वात । अन् तुला नेऊन दावीन श्मशानान्त।"

विधि : 

पहले उक्त चारों मन्त्र किसी भी ग्रहण-काल में १०५ बार जप कर ग्रहण-सिद्धि करे। 'जागृति' का यह विधान शनिवार या मङ्गलवार को करते हैं। इसके लिए पहले श्मशान में जाकर एक महीने के अन्दर गड़े हुए प्रेत की जगह देख आए। 'प्रेत' का पोस्ट-मार्टम (शव-विच्छेदन) न हुआ हो। 'जागति' की पूर्व - तैयारी निम्न प्रकार करे

सामग्री : 

(1) श्मशान में गड़े हुए 'प्रेत' के आस-पास एकाध पेड़-पौधा होगा। उसकी एक डाली ले आए या श्मशान में जाकर 'खापर-खुरी' (खप्पर का एक टुकड़ा) ले आए।

(२) श्मशान-बेरड : यह अत्यन्त महत्त्व - पूर्ण चीज है। बकरा काटते समय १/२ किलो काले उड़द उसकी गर्दन के नीचे इस प्रकार रखे कि बहनेवाला रक्त उड़द पर गिरे। इस रक्त में भिगोए उड़द ही 'श्मशान-बेरड' कहलाते हैं।

विशेष : 'श्मशान-बेरड' शीघ्र ही खराब हो जाते हैं। अतः जिस दिन जागति करनी हो, उसी दिन इन्हें प्राप्त करे।

(३) चना आधा किलो और 'मद्य' की एक बोतल । 

(४) १०-१५ नीम्बू। (५) हल्दी-कुंकुम, अगर-बत्ती, अक्षत आदि।

जिस दिन 'जागृति' करनी हो, उस दिन–(१) श्मशान से लाई 'खापर-खुरी' (पेड़ की डाली) मन्त्र १ एवं मन्त्र २ से इक्कीस-इक्कीस (२१-२१) बार अभिमन्त्रित करके रखे।

(२) 'श्मशान-बेरड' को भी मन्त्र १ एवं मन्त्र २ द्वारा २१-२१ बार अभिमन्त्रित करे। इसे करने में कुछ कठिनाई होती है क्योंकि मन्त्र-जप कर 'बेरड' पर फूंक मारने से दुर्गन्ध को सहना पड़ता है।

(३) 'जागृति' के समय जितने व्यक्ति उपस्थित हों, उन सबके लिए १-१ नीम्बू मन्त्र ३ (श्मशान-धक्का-निवारण मन्त्र) से २१ बार अभिमन्त्रित करे । प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा १ नीम्बू जेब में रखने को देना चाहिए। यह नीम्बू जमीन पर गिरना नहीं चाहिए, यह बात प्रत्येक व्यक्ति को बता दे । स्वयं भी एक नीम्बू साथ में रखे।।

(४) मन्त्र ४ (प्रेत गिराने का मन्त्र) से २१ बार अभिमन्त्रित एक नीम्बू अलग से अपने साथ रखे। इसे 'जागत प्रेत' पर फेंकने से वह वापस चला जाता है।

सिद्ध 'श्रीराम-रक्षा-स्तोत्र' द्वारा अभिमन्त्रित नीम्बू से भी उक्त कार्य होता है।

उक्त सभी वस्तुएँ श्मशान में रात्रि ६ बजे के बाद ले जाए । 'श्मशान-बेरड' की थैली अपने पास न रखे-अन्य व्यक्ति के हाथ में दे। यदि अपने पास ही रखना हो, तो 'बेरड' पूर्ण - तया बन्द होना चाहिए । प्लास्टिक की बैग में उसे पूर्णतः बन्द कर सकते हैं।

अब ‘खापर - खुरी' ( डाली) द्वारा गड़े हुए प्रेत को घड़ी - वत् (क्लॉक-वाइज) क्रमशः इस प्रकार 'रिङ्गण' (वत्त) मारे कि थोड़ी-सी जगह खुली रहे ? देखें चित्र-१'= खुली जगह । यदि पूरा श्मशान जागृत करना हो, तो सम्पूर्ण श्मशान को वृत्त मारे।

चित्र 1



 चेतावनी : 

यदि इस समय 'श्मशान - बेरड' प्रयोग - कर्ता के पास हो और वह जरा-सा भी खुला हो, तो उसके आकर्षण से प्रेत तुरन्त उठ खड़ा होगा-अगला विधान पूर्ण होने से पहले ही और ऐसा होना ठीक नहीं।

अब हल्दी-कुंकुम, अक्षत, अगर-बत्ती आदि से प्रेत की पूजा करे। फिर वहाँ से थोड़ी दूर जाकर बैठे और वहाँ से प्रेत की ओर 'श्मशानबेरड' के ८-१० दाने फेंके । इससे पहले हवा जोर से आँधी-जैसी बहने लगती है । पेड़ों के पत्ते हिलने लगते हैं। पौधे डोलने लगते हैं। बाद में 'सूऽऽसूऽऽऽ-घऽऽऽ' जैसी भय-प्रद आवाजें आती हैं। साथ ही जमीन में से 'प्रेत' उग्र रूप में उठकर खड़ा होकर, प्रयोग-कर्ता के सामने आ जाता है। उसके सामने आते ही, उससे उसका नाम पूछना चाहिए। नाम बताने पर, उससे तीन बार यह वचन ले कि "तीन तालियाँ बजाकर इस नाम से जब पुकारूँ, तब प्रत्यक्ष होकर बताया हुआ कार्य पूर्ण करना।" वचन लेने के बाद आधा किलो चना और मद्य की बोतल उसे दे दे। यह सारी क्रिया कितनी रोमाञ्चक और भय-प्रद है, यह बताने की आवश्यकता नहीं।

 जब तक 'प्रेत' को कब्जे में रखे, उसे नित्य आधा किलो चना और बोतल देता रहे। सभी कार्य 'प्रेत' करेगा। जब भी उसे गिरा कर, वापस भेजना हो, तब मन्त्र ४ से या 'श्रीराम-रक्षा' से अभिमन्त्रित नीम्बू उसे मारे-'प्रेत' गिरकर स्व - स्थान में सदा के लिए चला जाएगा।

यदि 'प्रेत' मुक्ति चाहे, तो उसे किस प्रकार मुक्ति मिल सकती है-यह बात उसी से पूछ ले । 'प्रेत' को गिराने के बजाय, उसे मुक्ति दिलाना उत्तम है।



शनिवार, 2 जनवरी 2021

दत्तात्रेय आसन-गायत्री शाबर मन्त्र

 दत्तात्रेय आसन-गायत्री शाबर मन्त्र

आसन ब्रह्मा, आसन विष्णु, आसन इन्द्र, आसन बैठे गुरु गोविन्द । आसन बैठो, धरो ध्यान, स्वामी कथनो ब्रह्म-ज्ञान । अजर आसन, वज्र किवाड़, वज्र वजड़े दशम द्वार । जो घाले वज्र घाव, उलट वज्र वाहि को खाव । हृदय मेरे हर बसे, जिसमें देव अनन्त । चौकी हनुमन्त वीर की। हनुमन्त वीर, पाँव जजीर । लोहे की कोठी, वज्र का ताला । हमारे घट-पिण्ड का गुरु देवदत्त आप रखवाला। पाय कोस अगुम कीले, पाय कोस पश्चिम कीले ।

दत्तात्रेय आसन-गायत्री शाबर मन्त्र
 दत्तात्रेय आसन-गायत्री शाबर मन्त्र


 पाय कोस उत्तर कोलूँ, पाय कोस दक्षिण कीलू । तिल कीलू, तिल-बाड़ी कीलूँ । अस्सी कोस की सारी विद्या की । नाचे भूत, तड़तड़ावे मसान । मेरा कील या करे उत्कील, वाको मारे हनुमन्त वीर । मेरा कील या करे उत्कील, ढाई पिण्ड भीतर मरे । मेरा दिया बाँध ट्टे, हनुमान की हाँक टूटे । रामचन्द्र का धनुष टूटे। सीता का सत टूटे । लक्ष्मण की कार छूटे । गङ्गा का नीर फूटे । ब्रह्मा का वाक टूटे । गऊ, गायत्री, ईश्वर-रक्षक । या पै ना मूल लगावे, ना लार । रक्षा करे गुरु दातार ॥१

खिन्न दाहिने, खिन्न बाएँ। खिन्न आगे, खिन्न पीछे होवे गुरु गोसाईं सिमरते । काया भङ्ग ना होवे ॥२ काल ना ढके, वाघ ना खावे ॥३ अमुक नाम सिर पर ना घाले घाव ॥४ हमारे सिर पर अलख गुरु का पाँव ॥५ रूखा बरखा, वीन हमारी, माल हमारा कूड़ा। जात हमारी सबसे ऊँची, शब्द गुरु का पूरा ॥६ चारों खानी, चार वाणी, चन्द्र-सूरज-पवन पाणी। धूनी ले आया बाल गोपाल । सब सन्तन मिल चेतावनी। बारह जागे, गढ़े निशान । हमारे सिर पर काल-जाल, जम-दूत का लगे ना दाँव ।।७।। वज्र-कासौटी बाहर-भीतर, वन में वासा अचिन्त साँप, गौहरा आवे न पास ॥८

सख्त धरती, मुक्त आकाश । घट-पिण्ड-प्राण, गुरु जी के पास ॥ रात रखे चन्द्रमा, दिन रखे सूरज, सदा रखे धरतरी । काल-कण्टक सब दूर ॥१० उगम पश्चिम कीलू, उगमी उत्तर-दक्षिण कीलूँ । अमुक नाम चले गोदावरी । लख अवधूत साथ । बाँ, चोर, सर्प और नाहर के सारे डार । रक्षा करें गुरु देवदत दातार ॥११ जो जाने आसन-गायत्री का भेद । आपे कर्ता, आपे देव ॥१२ इतना आसन-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया ॥१३ सर्व-सिद्धों में दत्तात्रेय जी कहा-अलख, अलख, अलख ॥१४

विधि-किसी अच्छे महर्त में उक्त मन्त्र का 108 बार जप करे। फिर उसका दशांश हवन ( लगभग 11 पाठ) निम्नलिखित सामग्री से करे-१ केसर, २ कस्तूरी, ३ मुस्की कपूर, ४ देसी शक्कर, ५ गाय का घी, ६ गूगल धूप बढ़िया तथा ७ चन्दन-बूरा । हर पाठ में, जहाँ संख्या १ से १४ दी हैं, 'स्वाहा' बोलकर आहुति दे । इस प्रकार १५४ आहतियाँ देनी पड़ेंगी। मन्त्र सिद्ध हो गया। अब किसी भी पीड़ित व्यक्ति के लिए १० बार मन्त्र का जप करे और एक पाठ से १४ आहुतियाँ सामग्री से दिलवा दे । भगवत्-कृपा से अप-मृत्यु भी टल जाती है । ग्रहों की शान्ति होती है।


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